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प्रस्तावना
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स्वामी वहाँ रहकर उसकी देख रेख करता था ( १|१३|९, ३|१|१० ) । रुहियासपुर नगर वर्णन से व्यापार आजीविका का प्रमुख साधन ज्ञात होता है । क्रय-विक्रय में मुद्रा के रूप में कौड़ियों का व्यवहार होता था ( १।२१ ) | मुद्रा के लिए द्रव्य और दीनार शब्द प्रयुक्त हुए हैं ( ३।१।२, १० )
भोजन
कवि ने खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय के भेद से आहार चार प्रकार का बताया है ( १।२२/४ ) । इनमें जो मुख्यत: भूख बुझाने के लिए चबा कर खाये जाते हैं वे पदार्थ खाद्य कहलाते हैं । कवि ने ऐसे अभक्ष्य पदार्थों में द्विदल अनाज और मांस का उल्लेख किया है ( १|१९/६ ) ।
जिन पदार्थों के सेवन से स्वाद में वृद्धि होती है वे स्वाद्य पदार्थ कहलाते हैं। ऐसे पदार्थों में कवि ने गाजर, मूली, अचार, दही, बड़ा आदि के नामों का निर्देश किया है ( १1१९/४-६ ) | लेह्य पदार्थ चाँट कर खाये जाते हैं। ऐसा ही पदार्थ है ( १।१९।४ ) । पीने के योग्य पदार्थ पेय कहे जाते हैं । अभक्ष्य पदार्थों में मद्य ( मदिरा) और घोल ( शर्बत और सिकंजी आदि ) ऐसे ही पदार्थ बताये गये हैं । पानी भी पेय पदार्थ है ( १|१९|४,६,९ ) ।
अभक्ष्य पदार्थों में मधु एक
कवि ने आम्रफल का उल्लेख भी किया है तथा उसके साथ स्वाद क्रिया को भी जोड़ा है ( १।१२।१० ) । इससे स्पष्ट है कि कवि ने उसे स्वाद्य पदार्थ माना है । चूस कर खाये जाने से इसे चूस्य पदार्थ भी कहा गया है ।
बाजार-वर्णन प्रसंग में कवि ने ताम्बूल भक्षण की भी चर्चा की है । ( १।१२।२० ) | यह स्वाद्य पदार्थ माना गया है। भोजन में छहो रसों के पदार्थ होते थे ( ३|१|२ ) ।
वस्त्र
कवि ने वस्त्रों के समयानुसार प्रयोगों का निर्देश किया है। उन्होंने मन्दिर के लिए धवल वस्त्रों के व्यवहार का ( १।२१।१) और भोजन के समय वस्त्र बदलकर भोजन करने का उल्लेख ( २1१/२ ) किया है। वृक्षों को छाल भो वस्त्र का काम करती थी ( ३।३।१४ ) | दो प्रकार के वस्त्रों का कवि ने उल्लेख किया है— देवंगई ( ३|१|४ ) और कुसमइ वस्त्र ( ५ | १८|५ ) | ये वस्त्र राज घराने के या धनिक लोग पहनते थे ।
आभूषण : स्त्रियाँ दायीं वायीं दोनों और सोलह-सोलह आभूषण पहिन कर शृंगार करती थीं ( ३/६/५) | कवि ने इन आभूषणों के नामों का
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