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चतुर्थ परिच्छेद
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करें । इस पाप से नरक प्राप्त होता है || १४ || वहाँ सभी नारकी मारते हैं, (जीव ) पाँच प्रकार के दुःख सहता है ॥ १५ ॥ | इसी बीच वेश्या के परिवार के लोगों ने कोटवार और सिपाही को बुलाया || १६ || उन्होंने कहा- हमारी विनती सुनिए, हम दुःखी हैं, हमारी परम प्रिय ( वृद्धा वेश्या ) को ( इसने ) गधी बनाया है || १७|| यह कोई व्यभिचारी एवं धूर्त पृथिवी पर फिरता है और नगर की स्त्रियों को तत्काल इकट्ठा कर लेता है ||१८|| घर के परिजनों को भ्रष्ट करनेवाले उस निकृष्ट, परदेशी को शीघ्र मारो ||१९|| उनके ऐसा कहने से कुटुम्ब के बालक उठे और उन्होंने कुमार को चारों दिशाओं से तत्काल घेर लिया ॥२०-२१|| ( वे पूछने लगे) रे पापी ! किस विधि से वेश्या स्त्री को तुमने गधी बनाया है ? ||२२|| रे निद्य ! उसका जो रूप बनाया गया है वह छोड़ो, अन्यथा रे दुर्जन ! यम का कुठार पड़ता है ||२३||
घत्ता - तुम्हें जो उचित हो वह करो । तूने ही वेश्या को गंधी बनाया है । तुम पापी हो, दूसरों को सतानेवाले हो हम स्वयं तुम्हारा शिर काट देते हैं ।।४-१२।
[ ४-१३ ]
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[ वइरसेन का आक्रमण, राजसेना का पलायन एवं बड़े भाई से मिलन ] ( वेश्या के पक्षधरों के आक्रोश पूर्ण वचन ) सुनकर राजपुत्र-वइरकुपित हुआ । ( वह ) वेश्या के वंश के बालकों के पीछे यम के समान लग गया || १ || बिजली के समान ( शीघ्रगामी ) ( उसने ) अपनी लाठी छोड़ी। वह उनके सिर पर ऐसे घूमती है जैसे चक्र घूमता है ||२|| उसे हाथ में लेकर उसके द्वारा सभो मारे-पीटे गये । सम्पूर्ण नगर में कोलाहल हो गया || ३ || कोई मारे जाते हैं, कोई भाग जाते हैं और कोई काँपने लगते हैं । कोई शत्रु शरण में आकर पैरों में पड़ जाते हैं ||४|| कोई कहता है - हे देव ! छोड़ दो, तुम्हारी सेवा करते हैं। हे उपमा रहित ! हमें जीवन दान दो ||५|| कोई राजा के पास जाकर चिल्लाये हे पृथिवी के स्वामी ! बैरी को त्रास देनेवाले ! हमारे वचन सुनो, हे स्वामी ! सूर्य के समान तेजवान् एक धूतं तुम्हारे नगर में आया है ||६-७|| वह ऐसा प्रतीत होता है मानो निगलकर खाने को काल आया हो (वह) मागधी वेश्या को दुःखदायी हुआ है ||८|| गधी बनाकर और उस पर सवार होकर वह उसे नगर में घुमाता है। इतना ही नहीं, वह तुम्हारे कोतवाल को (भी) मार रहा है ||९|| उसके भय से नगर निवासी भाग गये हैं । उस उन्मादी ने सिंह के समान
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