Book Title: Amarsenchariu
Author(s): Manikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

View full book text
Previous | Next

Page 277
________________ २६४ अमरसेणचरिउ तह वणिया-पेमाही सारी । पुत्तच्चउ किजुव मणहारी ॥७॥ अग्गिमु बाणे [हुउ] सेयं सिउ । उज्जल जसचरिऊ विजयंसिउ ॥८॥ असुवरूपरहइ तियहि विरत्तउ । जं असच्चु कइयाणउ उत्तउ ॥९॥ दिउराजु जि जिण सहहि महल्लउ। णोणाही तिय-रमणु वि भल्लउ॥१०॥ तहु कुक्खि-सिप्पि-मुत्ताहलाई । उप्पण्णइं वे सुय रिउ-सलाई ॥११॥ पहिला रउ णिय कुलहं वि दोउ । हरिवंसु णामु गुण-गण वि दोउ ॥१२॥ घत्ता तहु भज्जा, गुणहि-मणुज्जा, मेल्हाही पणिज्जए। गउरि गंग णं उवहि सुया, तहु कस उप्पम दिज्जई ॥७-१२ ॥ [७-१३ ] पुन्वहि अभयदाणु असु-दिण्णउ । तहु सुउ अभयचंदु सु-सण्णिउं ॥१॥ अवरु वि गुण-रयहिं रयणायरु । देवराज-सुउ सयल-दिवायरु ॥२॥ रतनपालु णामें पभणिज्जइ । तहु भूराही ललणवि गिज्जइ ॥३॥ देवराय पुणु वीयउ भायउ । झाझू-णामें जय-विक्खायउ ॥४॥ तह चोचाही भज्ज कहिज्जइ । तो तेयहु णेहें जोच्छज्जइ ॥५॥ पढमउ गायराउ तहु कामिणि । सूवटही णामें जण-राविणि ॥६॥ वीयउ गेल्हु वि अवरु पयासिउ । माझ-तीयउ पुत्तु पयासिउ ॥७॥ चाऊ णामें जण-विक्खायउ । महणा-सुउ चुगणा पिय भासउ ॥८॥ गरही तहु भामिणि सारी । खेतसिंघ-णंदण जुय-हारी ।[९॥ सिरियपालु पुणु रायमल्लु । पुणु कुवरपालु भासिउ जडिल्लु ॥१०॥ महणा अवरु चउत्थउ गंदणु । छुटमल्लु वि जो धम्महु संदणु ॥११॥ फेराही अंगण-मणहारउ । दरगहमल्लु विणंदणु रह सारउ ॥१२॥ घत्ता करमचंद पुणु पत्तु, वीयउ जोजु वि भण्णिउं । साहाहिय पिय उत्तु, गुर-पय-रत्तु विणाणिउं ॥७-१३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300