Book Title: Amarsenchariu
Author(s): Manikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
अमरसेणचरिउ
[ ७-१४ ]
तो अंतही अंगो भव तिणि जोय । विसु-सुय पवणंजउ अज्जुणोय ॥ १ पहिला रउरावण तस्स णारि । रामाही जाया अहि-पियारी ॥२॥ तहु सरीरि सुव चारि उवण्णा । पुहईमल्लु वि पढमु सुवण्णा ॥३॥ तस्स भज्ज वहु णेहालंकिय । कुलचंदही जाया वहु सं किय || || ४ || सिंधु तह कुक्खि उपण्णउ । गग्गिर- गिरु णव कंचन वण्णउं ॥ ५ ॥ पुणु जसचंद व चंदु भणिज्जइं । लूणाही - पिययम- अणुरंजइ ॥६॥ तह वितणं घउ-लक्खण-लंकिउ । मदसंह जो पावहं सं किउ ॥७॥ अवरु वि वीणकंठु वोणावरु । पोपाही तहु कामिणि मणहरु ॥८॥ संघुवित सुउ वि गरिट्ठउ । लच्छि पिल्लु णं पियरहं इट्ठउ ||९|| पुणु लाडणु रूवें मय-रद्धउ । तह वीवो कंता वि जसद्धउ ॥१०॥ पुणु जोजा वीउ पुत्तु सारु । णिय रूवें जित्तउ जेण मारु ॥११॥ दोदाही - कामिण अरंजइ । जें सुहि मरणें सग्गि-गमिज्जइ ॥ १२॥ जोजा अवरु वि णंदणु सारउ । लष (क्ष) मणु-णा में पंडिय- हारउ ॥१३॥ मल्लाही - कामिणि तहु णंदणु । होरु णामे जण मण - णंदणु ॥ १४॥
२६६
धत्ता
अवरु वि णंदणु तीयउ, ताल्हू णामें भासि [3] | वाल्हाही - मणहारु, वे सुय ताह समासिउं ॥ ७-१४ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300