Book Title: Amarsenchariu
Author(s): Manikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 298
________________ २८५ परोसिउ पहिराविय पाइ पापर पालइ पीटि पुण्णयाई पेरिउ पोइज्जइ फसइ भलउ भरि भूलउ परिशिष्ट-३ परोसा पहिरा कर देशी धातु पाना देशी धातु पापड़ पालता है-देशी धातु पीटकर देशी धातु पुण्याइ से पेरा देशी धातु पोया जाना देशी धातु फसता है देशी धातु भला भरकर देशी धातु भूल नहीं सहित मरण मारने से मूसना देशी धातु मोड़ते हुए मयूर रहता है देशी धातु सहमत रूख लग गया देशी धातु लेकर देशो धातु फिर-फिर विगोता है देशी धातु सबेरा भाई वृद्धा १।२२।१५ १।२१।१ १११११२ १।१५।६ १।४।१ ४।१२।८ २।२।२ १।१७।१ १।१५७ १।१४।३ १।१८।१२ ५।१५।१ ५।१६।२ १।१९।१९ २।१२।२ १।१६।१७ ३।२।१४ ४।१९ १।१५।१२ १।११।११ ४।१३ १।१४।१२ ३।३।१४ २।२।१४ १।९।१३ २।५।१७ मत मय मरत मारणेण मुस् मोडयंत मोर रहेइ राजी रुक्ख लग्गियउ लेवि वार-वार विगोवइ विहाण वीरु बुढि वेइ वे ही २।१३।१ २।१२ ४।११।२३ १।२१।१२ १।१७।३ २।३।१ बेड़ी वेडी वेरहिं वेरा ( समय ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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