Book Title: Amarsenchariu
Author(s): Manikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 281
________________ अमरसेणचरिउ ७- १५ ] पढमउ पोमकंति-दामू सुहो । ईच्छाही भामिणि दिष्णउ सुहो ॥१॥ महदासु वि तहु पुत्तु पियारउ । पुणु दिवदासु वीरु [मण] हारउ ॥२॥ रुधारणंही भ‍ -भज्ज मोहरु | घणम-दणु तह पुणु सुयहरु ॥३॥ जगमल्लाही कामिण तहु सारी । वायमल्लु पोसणारी ॥४॥ सुय राजहंसु [] यासिउ । काराविउ सत्तु जि रस-सारउ ॥५॥ | जं अक्खरु ण किंपि वि णासिउ ॥ ६ ॥ २६८ कोह-मोह-मय-माण-वियारउ सुपसाएं वि विरुद्धउ भासिउ । ॥७॥ तं सरसइ महु खमउ भडारी । वीर- जिणहो मुह- णिग्गय सारी ॥८॥ हेम पोम आयरिय विसेस | वंभज्जुण गुण-गणिण णिहीसें ॥९॥ मई कसट्टिय वण्ण घरेष्पिणु । कव्वे सुवण्णहु लोहवि देष्पिणु ॥ १०॥ मत्त-अत्थ सोहग्गु खिवे विणु । अत्थ-विरुद्ध - किट्टि कट्टेविण ॥११॥ सोहिउ एहु वि मणु लाए विणु । होउ चिराउसु कव - रसायणु ॥१२॥ विक्कम - रायहुवव गय कालई । लेसु मुगोस वि सर अंका लई ॥ १३ ॥ धरणि अंक सहु चइत वि मासे । सणिवारे कित्तिय णक्खतें सुह-जोयं । हुउ पुण्णउ सुय-पंचमि दिवसे ॥१४॥ सुत्तु वि सुह जोयं ॥ १५॥ घत्ता हो वीर जिणेसर, जग परमेस्वर, एत्तिउ लहु महु दिज्जउ । जहि कोहु ण माणु, आवण- जाणु सासय-पउ Jain Education International महु दिज्जउ ॥ ७-१५ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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