Book Title: Amarsenchariu
Author(s): Manikkraj Pandit, Kasturchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
२३८
अमरसेणचरिउ
घत्ता
ता पोमादेवी, सुर-सय-सेवी,
तत्थाइ वि पणविवि जिणहं। जा वाहिर गच्छइ, ता मणि अच्छइ,
णारि दिट्ट जिणयंगणहर ॥६-९॥
[६-१०] सा पुच्छा का तुहं सुह-भावण । केण विहाणें आया पावण ॥१॥ ताम पहावई इ वित्तंतो। णिरवसेसु वज्जरिउ णिभंतो॥२॥ एतहिं खणि च उ-देव-णिकाया । दुंदुहि-सद्दे तत्थ समाया ॥३॥ ताहं णिएप्पिणु तं जहिं पुच्छिउ । किं कारणि सुर आइयसुच्छउ ॥४॥ पोमावइ-जंपइ अज्जु जि वरु । भद्दव-सिय-पंचमि-सुहवासरु ॥५॥ कुसुमंजलि-दिणु अज्जु पसिद्धउ । सुरयणु तेणायउ हरि सुट्टउ ॥६॥ सुर-तिय किम इह वउ-विरइज्जइ । महु अग्गे असेसु भाविज्जइ ॥७॥ भद्दव आइ अंतमहु मासो। जेण केण वसु मज्झि पयासो ॥८॥ सेय-पक्खि-पंचमि-दिणि होतउ । किज्जइ इय पण-दिवसु णिरत्तउ ॥९॥ जिण-चउवीस-पडिम-अहिसेविउ । विरइवि पुणु पूया सुह-हेयउ ॥१०॥ तंदुलाहं चउवीस जि पुंजइ । दिज्जइ अग्ग-पएसि मणुज्जइ ॥११॥ ताहं उवरि वर फुल्ल एक्केक्कउ । थपिज्जइ मण-सुहयरु एक्कउ ॥१२॥ पणु तित्थयरु णाउ उच्चारहि । करि वि परिक्खण दुरिय-णिवास(र)हि॥३ कुसुमंजलि-जिण णाहहो दिज्जइ । पंच वण्ण-कुसुमोहहि किज्जइ ॥१४॥ कुसुमाभावें अक्खय-सारहिं । दिज्जइ पुप्फंजलि-वय-धारहि ॥१५॥
घत्ता
संवच्छर-तिण्णि-पवाणु-वउ,
किज्जइ पुणु उज्जवण-विहि । पुज्जा-उज्जवणु असेसु णिरु,
ठाविज्जहि जिण जाहहि-गिहि ॥ ६-१० ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300