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षष्ठम परिच्छेद
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घत्ता - वहाँ सैकड़ों देवों से सेवित पद्मावती देवी वहाँ आकर जिनेन्द्र की वन्दना करके जब बाहर जाती हैं तब जिनालय के प्रांगण में उसे मन को प्रिय लगनेवाली ( एक ) स्त्री दिखाई दी ।। ६-९ ।।
[ ६-१० ]
[ पद्मावती देवी से प्रभावती का कुसुमाञ्जलि व्रत कथा श्रवण-वर्णन ]
पद्मावती देवी के द्वारा प्रभावती से पूछा गया । हे शुभ- भावने ! तुम कौन हो, हे पवित्र आत्मन् ! कैसे आई हो ? || १ || प्रभावती ने बिना किसी आशंका के सम्पूर्ण वृत्तान्त उस देवी से कहा ||२|| इसी बीच क्षण भर में चारों निकाय के देवों की दुदुभि ध्वनि वहाँ आयी ||३|| उन देवों को देखकर प्रभावती ने ( पद्मावती देवी ) से पूछा- देवों ने किस कारण से आकर उत्सव किया है ? ||४|| पद्मावती देवी कहती है- आज भादव मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी ( तिथि ) का श्रेष्ठ शुभ दिन है ||५|| आज प्रसिद्ध कुसुमाञ्जलि ( व्रत ) का दिन है इसलिए इस पवित्र स्थान में सुर-वृन्द और इन्द्र आये हैं ||६|| ( पुनः प्रभावती पूछती है है देवी - ) देवांगनाएँ इस व्रत को किस प्रकार रचाती हैं / करती हैं- मेरे आगे सम्पूर्ण विधि कहें ||७|| ( पद्मावती देवी कहती है - हे प्रभावती ) भादव मास के अन्त में जिस किसी प्रकार पृथिवी पर इसे प्रकाशित करो ||८|| इस मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन से लगातार पाँच दिन करो ||९|| चौबीसों जिनेन्द्र - प्रतिमाओं का अभिषेक करके सुख की हेतु यह पूजा रचाकर चौबीसों जिन - प्रतिमाओं के आगे मनोज्ञ तन्दुल चढ़ाकर उनकी पूजा करो ।। १०-११ || इसके पश्चात् मनोज्ञ एक-एक पुष्प प्रत्येक तीर्थंकर (प्रतिमा) को चढ़ाओ || १२ || इसके पश्चात् तीर्थंकर का नाम उच्चारण करते हुए पापों का निवारण करनेवाली परिक्रमा करके पाँच विभिन्न रंगों के पुष्पों का गुच्छा बनाकर जिननाथ को कुसुमांजलि चढ़ावे ॥१३-१४।। फूलों के अभाव में सुन्दर- बिना टूटे अक्षतों की पुष्पांजलि देकर व्रत धारण करे ||१५||
धत्ता -- तीन वर्ष प्रमाण व्रत करे पश्चात् विधि पूर्वक उद्यापन करे । उद्यापन में जिनालय में सभी तीर्थंकर प्रतिमाओं की स्थापना करके सभी की पूजा करे ॥६- १०॥
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