________________
सप्तम परिच्छेद
२४२
२४९
[७-२] [ राम-लक्ष्मण और भरत की केवली देशभूषण की वन्दना तथा त्रिलोक
मण्डन हाथी के आहार-त्याग का प्रश्न-वर्णन] वह हाथी भरत को देखकर क्षण भर में उत्पन्न हुए जातिस्मरण से [शान्त ] हो गया ॥१॥ उसके ( हाथी के । शान्त होने पर वे भरत आत्म-स्वरूप का स्मरण करके विनय पूर्वक सीता से भिड़ गये | तत्त्वचर्चा करने लगे।।२।। उन्होंने जाकर अयोध्यापुरी में प्रवेश किया। उन्हें अनुराग पूर्वक नारायण-लक्ष्मण और बलभद्र-राम दिखाई दिये ॥३॥ हाथी की जंजीर खम्भे से बाँधकर नारायण के बराबर स्थान पर जाकर बैठ गये ।।४। उसके द्वारा मिष्ठ वाणी से श्री राम से कहा गया-राजा के हाथी ( त्रिले कमण्डन ) के द्वारा आहार-जल छोड़ दिया गया है ॥५॥ उपवास करते हुए उसे तीन दिन हो गये हैं-ऐसा कहते हए उन्होंने दुःख प्रकट किया ॥६॥ उसी समय किन्हीं अन्य लोगों के द्वारा राम से कहा गया-जिससे उनके चित्त में आनन्द प्रकट हुआ, (कि ) आपके पुण्य से देशभूषण नाम के निष्कलंक केवली आये हैं ।।७-८।। राम, भक्ति पूर्वक लक्ष्मण और भरत के साथ शोघ्र वन्दना के लिए वहाँ गये ॥९॥ केवली को नमस्कार करके धर्म-श्रवण किया। इसके पश्चात् अवसर पाकर उन्होंने ( राम ने) पूछा ।।१०।। स्वामो ! हाथी के द्वारा सुख-निवारक आहार-जल त्याग किये जाने का क्या कारण है ? ||११||
पत्ता-राग-द्वेष रहित उन परम यतीश्वर ऋषि ने सभी को आशीर्वाद दिया। ऋषि के वहाँ उन्हें दो आज्ञाकारी सेवक दिखाई दिये ।।७-२।।
[७-३] [ सूर्योदय ( त्रिलोकमण्डन हाथी ) और चन्द्रोदय ( भरत ) का
भवान्तर-वर्णन ] ( वे दोनों सेवक ) मूर्ख सूर्योदय और चन्द्रोदय तप त्याग करके राज्यारूढ़ होते हैं | राज्य करते हैं ।।१।। सूर्यास्त के समय आत्तध्यान से मरकर स्त्री योनि की अनेक पर्यायों में भ्रमण करने के पश्चात् दोनों में ( छोटा भाई ) चन्द्रोदय कुरुजांगल ( देश ) के गजपुर ( हस्तिनापुर ) नगर के हरपति नामक ( राजा) की हृदयहारिणी मनोहर श्री दामा नामा रानी के गर्भ से गुणों से युक्त जगत्-प्रसिद्ध कुलंकर नाम से उत्पन्न हुआ ।।२-५।। विश्वतास उस राजा का मंत्री और निर्मल-कान्ति-धारिणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org