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षष्ठम परिच्छेद
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वहाँ जितशत्रु नाम का राजा और कंचनमाला उस राजा की प्रिया जानो || ६ || श्रुतप्रवर श्रुतकीर्ति पुरोहित और हृदयहारिणी बन्धुमती ( उसकी ) स्त्री थी ||७|| इन दोनों की पुत्री गुणों की निधि प्रभावती ने जिनागम का विधि-पूर्वक स्वाध्याय किया था ||८|| एक दिन शय्या पर सोते हुए बन्धुमती सर्प द्वारा इस ली गयी || ९ || पुत्री - विप्र श्रुतकीर्ति के निकट दुःखी होती हुई रोती है । अग्नि संस्कार करने को ( माता की मृत ) देह नहीं छोड़ती / देती ॥१०॥ कह कहकर बड़ी कठिनाई से उसे जलाया । ( पश्चात् ) शोक रहित होकर दीप प्रज्वलित किया || ११|| घत्ता - शोकाकुलित स्वजन-जन ( उस प्रभावती को वहाँ ले गये ) जहाँ मुनिराज ( उसके पिता ) थे, उन्होंने वाणी से सम्बोधन दिया । और अन्य शो आदि निवृत्त होकर उसने शीघ्र द्विविध तप धारण कर लिया ॥६-८।।
[ ६-९ ]
[ प्रभावती द्वारा श्रुतकीर्ति का समझाया जाना, रुष्ट होकर श्रुतकीर्ति द्वारा प्रभावती को कैलास पहुँचवाना, प्रभावती का महाव्रती होना तथा पद्मावती देवी का समागम वर्णन ]
वह दिगम्बर ( प्रभावती का पिता ) सशंकित होकर चंचल-चित्त हो गया । उसने दृढ़ता पूर्वक मांत्रिक वचनों से सिद्ध की गयी विद्या को ले जाकर उस प्रभावती पर छोड़ा और स्वयं को भोग-प्रवृत्तियों में लगाया ||१-२।। उसे प्रभावती रातदिन कहती है / समझाती है किन्तु इसके कर्म ठीक नहीं होते || ३ || हे विप्र ! रत्नत्रय - चारित्र को पाकर दुःख के पिटारे तुष खण्ड को कौन ग्रहण करता है ||४|| इस प्रकार बार-बार कहे गये पवित्र वचन उस भ्रष्ट श्रुतकीर्ति को दुःखदायी होते हैं ||५|| इस पुत्री के द्वारा में सताया गया हूँ। हमें इसने सर्प के समान काले हृदय का समझा है || ६ || इसके पश्चात् क्षणभर में क्रोध से श्रुतकीर्ति ने पुत्री को निर्जन वन में ले जाकर क्षणभर में विद्या से मिला दिया ॥ ७ ॥ वहाँ वह (पुत्री- प्रभावती ) शुभ ध्यान में स्थित होकर भय मुक्त हो अनुप्रेक्षाओं को भाती है ||८|| इसके पश्चात् देखने में मनोज्ञ उस प्रभावती को देखने पिता ने विद्या भेजी ||९|| विद्या ने उस प्रभावती को सिद्धक्षेत्रकल्याणभूमि कैलास पर्वत पर ले जाकर स्थापित किया ||१०|| प्रभावती सभी जिनेन्द्रों की वन्दना करके जिनालय में जाकर महाव्रतों को प्रकट करके स्थित हो गयी ॥११॥
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