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अमरसेणचरिउ मुरैना, पुत्र-पंकज जैन, और मंजू (विनीता ) बी० ए०, संजू ( सरिता) बी० ए०, भारती एम० ए०, मुक्ती तथा ज्योति पुत्रियों का इस सन्दर्भ में जो विविध प्रकार से सहयोग मिला है उसे भुलाया नहीं जा सकता। मैं सभी के अभ्युदय की कामना करता हूँ।
आदरणीय पिता वैद्य छोटेलाल जी के विद्या-स्नेह और दानवीर स० सि० कुन्दनलाल जी जैन, सागर की उदारता के परिणामस्वरूप ही मुझे इस कार्य के करने की क्षमता प्राप्त हुई है। मैं इन पुनीत आत्माओं को सविनय प्रणाम करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ।
श्री गणेश दिगम्बर जैन विद्यालय, सागर और श्री दि० जैन वर्णी गुरुकुल पिसनहारी मढिया, जबलपुर के उपकारों को कैसे भुलाया जा सकता है । परम पूज्य गणेशप्रसाद जी वर्णी द्वारा संस्थापित इन विद्यालयों में मुझे अध्ययन करने का सुयोग मिला है। मैं इन विद्यालयों और पूज्य वर्णी जी का ऋणी हूँ। __ भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत् परिषद् सोनागिरि ( म० प्र०) का भी आभारी हूँ जिसकी अनुकम्पा से प्रस्तुत रचना प्रकाशित हो सकी है। शुद्ध, सुन्दर और स्वच्छ मुद्रण के लिए मुद्रणालय के व्यवस्थापक महोदय भी हार्दिक धन्यवाद के पात्र हैं। ___अन्त में मैं उन सभी महानुभावों के प्रति भी अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ जिन्होंने जाने, अनजाने इस कृति के सम्पादन, अनुवाद तथा प्रकाशन में सस्नेह सहयोग दिया है । मैं उन लेखकों का भी आभारी हूँ जिनकी रचनाओं का अध्ययन इस कार्य में सहायक हुआ है।
प्रमादवश या अज्ञानवश त्रुटियाँ रह जाना स्वाभाविक है। मैं प्रस्तुत रचना में हुई अशुद्धियों के लिए विद्वान् पाठकों से क्षमाप्रार्थी हूँ । सुधी पाठकों से मेरा सविनय अनुरोध है कि वे मुझे त्रुटियाँ अवश्य सूचित करने की कृपा करें जिससे कि आगामी संस्करण में उनका परिमार्जन किया जा सके।
डॉ० कस्तूरचन्द्र जैन 'सुमन' जैन विद्या संस्थान, श्रीमहावीर जी
दि० १५/१२/९०, शनिवार
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