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प्रथम परिच्छेद
६१ [१-२] गौतम-गणधर की स्तुति एवं गुरु-स्मरण ज्ञानी गौतम-गणधर को नमस्कार करने के पश्चात् जिसके द्वारा अर्हन्त वाणी सम्यक् रूप से कही गयी, भवसागर से पार होने को सुखकर नोका के समान पदार्थ बताये गये, उनके अनुक्रम में निज आत्मा के स्वरूप को भली प्रकार जानकर उसमें तन्मय रहनेवाले प्रधान मुनि आगम के शब्द और अर्थ के भण्डार हए जिसके द्वारा चन्द्रमा को धारण करनेवाले (शिव) और (कामदेव के कथित) पाँचों बाण जीते गये, विज्ञान और कला के भण्डार तथा उसके असीम ज्ञान को प्राप्त जिसके द्वारा समान रूप से भव्य जीव पार लगाये गये, राग-द्वेष से रहित संयमी उस साधु-सन्तति के मुनिवृन्द के स्वामी जिसके द्वारा प्रवीणतापूर्वक (इस) ग्रन्थ-कथन की प्रेरणा की गयी, निज ध्यान (और) परमपद में लीन होकर (जिसने) तप-तेज से निज तन क्षीण किया उन प्रवीण श्री खेमकीर्ति के पट्ट में जिसका हेमकीर्ति नाम था, उसके पट्ट (में) दयालु यतियों में वरिष्ठ निर्ग्रन्थ जिसके द्वारा भली प्रकार जिनागम के भेद कहे गये वे कुमारसेन उनके पट्ट पर बैठे बुद्धिमानों में प्रधान मदरूपी अन्धकार के लिए सूर्य स्वरूप श्री हेमचन्द, उनके पट्ट में व्रतों में धुरन्धर प्रवीण और तप से क्षीण, शील की खदान, दयालु, अमृत के समान वाणीवाले निर्ग्रन्थ अपने गुरु श्रेष्ठ पद्मनन्दि को प्रणाम करने के पश्चात् शब्द और अर्थ से सुन्दर कर्ण-सुखद् कथा कहता हूँ, श्रवण करें ।।१-१४।।
पत्ता-जो बुद्धिमानों को चिन्तामणि रत्न और धर्मरस रूपी नदी के समान है, राजा श्रेणिक की सुखदायिनो वह कथा गौतम-गणधर ने इस प्रकार कही है ।।२।।
[१-३ ] __ रुहियास (रोहतक) नगर-वर्णन पृथिवी-मण्डल में प्रधान, गणवरिष्ठ (और) देवताओं के मन में भी भली प्रकार विस्मय उत्पन्न करनेवाला, श्रेष्ठ और पवित्र तीन प्राकारों से सुशोभित इस पथिवी मण्डल पर पार प्राप्त देव-पण्डित बहस्पति के समान तथा बैरियों को हृदय की कठिन शल्य स्वरूप प्रतीत होनेवाला, जहाँ पांडुर एवं स्वर्ण-वर्णवाली शभ ध्वजाओं से युक्त जिन-मन्दिर निरन्तर शोभायमान रहते हैं, जहाँ सत्कर्मों के समान मन को सुख देनेवाले अट्टालिकाओं और तोरणों से युक्त भवन हैं, जहाँ चारों ओर द्रव्य की चर्चा और श्रेष्ठ
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