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प्रथम परिच्छेद अवतरित हुआ हो।।१३।। जहाँ रात्रि में चारों दिशाओं में ऊँचे साल और हवा में झूमते हुए तमाल वृक्ष शोभते हैं ।।१४।। जहाँ स्थित श्रेष्ठ परिखा दीर्घाकार सर्पकूण्डली के समान शोभती है ॥१५॥ वह परिखा सती स्त्री के चित्त के समान पर पुरुषों से अलंघ्य, गम्भीर, और महान् बुधजनों के समान सुस्थिर है ।।१६।। जहाँ परमार्थ स्वरूप निर्मित मठ, देवालय, विहार और चौराहों पर चौक तथा तोरण शोभते हैं ।।१७।। जहाँ नभस्पर्शी श्रेष्ठ तिलक और अंजन वृक्षों से वन अलंकारगृह के समान (शोभते) हैं ।।१८।। जहाँ राजा के गमनागमन के लिए मदोन्मत्त हाथी और गोपुर (दरवाजे ) शोभते हैं ।।१९।। जहाँ मनोहर राजमार्ग का धरातल पान की पीक के रंग से रँगे हुए हैं ।।२०॥
घत्ता-इस नगर का राजा विनयवन्त और चतुर है। पराया धन हरने में पृथिवी पर वह पंगु, परस्त्रियों को देखने के लिए अन्धा और दसरों की कथा कहने में गूंगा है किन्तु लोगों को दान देने में उसे पाबन्दी नहीं है ।।१-१२॥
[१-१३ ] ऋषभपुर के राजा अरिमर्दन, श्रेष्ठी अभयंकर और उसके कर्मचारी
धण्णंकर-पुण्णंकर का परिचय एवं पुण्य-पाप-फल वर्णन अतिबलशाली राजाओं को जिसके द्वारा दण्ड धारण किया गया (वह) अरिमर्दन नाम का प्रचण्ड राजा है ॥१॥ देवलदे नाम की उसकी पटरानी सौन्दर्य की खदान, गलाबी वर्णवाली, गजगामिनी, मिष्ट-भाषिणी, सुखनिधान, शील की खान, और जिनेन्द्र तथा गुरु के चरणों की भक्त है ॥२-३।। पृथिवी पर वह प्रधान राजा मंत्रियों से मंत्रणा ज्ञात करके भलो प्रकार अपने नगरवासियों को सेवा करता है ॥४॥ वहाँ श्रुतज्ञ और ऋद्धियों से सम्पन्न, परोपकारी और सम्यग्दृष्टि अभयंकर व्यापारी रहता है। वह निज हृदय से परमेष्ठी को आराधना करता है ।।५-६।। उसको स्त्री कुशल, व्रतों से पवित्र, जिनधर्म में आसक्त और मिथ्यात्व हीन है ॥७॥ उसके घर में धण्णंकर और पुण्णंकर दो भाई कर्मचारी रहते हैं ।।८।। बड़ा भाई वहाँ गृहकार्य करता है और छोटा भाई उपवन धन की रक्षा करता है ।।९।। दोनों विनीत, सरलचित्त और सेठ अभयंकर के परम भक्त हैं ।।१०।। दोनों भाई हर्षित मन से सेठ के घर सुखपूर्वक रहते हैं और वार्तालाप करते हैं ॥११॥ यहाँ पुण्य और पाप में बड़ा अन्तर है। एक से (जीव) सुख (भोगता है) और एक से कष्ट सहता है ॥१२॥ एक रंक है और एक भूपति है ( जो)
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