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द्वितीय परिच्छेद
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घत्ता- - धण्णंकर और पुण्णंकर दोनों कर्मचारी भाइयों ने शुभ ( सोलह कारण ) भावनाओं को भाते हुए तथा जिससे मनुष्य और देव-पद होता है उस नौ पद वाले णमोकार मंत्र जपते हुए समाधिमरण किया ॥२- १॥
[ २-२ ]
[ सनत्कुमार-स्वर्ग से चयकर राजा सूरसेन के युगल पुत्र के रूप में धणंकर - पुण्णंकर का जन्म-वर्णन ]
दोनों भाई सनत्कुमार स्वर्ग में जाकर उत्पादशिला पर जन्म प्राप्त करके विभ्रम में पड़ जाते हैं ( वे यह नहीं समझ पाते कि ) दस दिशाओं कहाँ से किस पुण्य से आये हैं । यह कौन स्थान है ॥१-२|| इस प्रकार विचार करते ही उन्हें अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ । इस ज्ञान से ( उन्होंने ) सब कुछ जान लिया ||३|| सात सागर की श्रेष्ठ आयु को भोगने के पश्चात् अप्सरा के समान सुन्दर देह त्याग करके ( राजा सूरसेन की रानी विजयादेवी के गर्भ में आये ) ||४|| इस जम्बूद्वीप का (एक) भरतक्षेत्र है ( उसमें ) प्रसिद्ध कलिंग देश स्थित है ॥५॥ | उस देश में दलवट्टण नाम का पत्तननगर है । ( उसके ) द्वार दरवाजे से बहुत सेना घूमती-फिरती है || ६ || नगर में वट वृक्ष दिखाई देते हैं । उस नगर में हिंसक ( भी ) हिंसा नहीं करते हैं ||७|| चार गोपुरों में वह ऐसा प्रतीत होता है मानों चतुर्मुख ब्रह्मा हो । उज्ज्वल तीनों कोट ईश्वर के द्वारा रचे गये प्रतीत होते थे ||८|| वहाँ बैरी रूपी पर्वत के वैरियों के सिर स्वरूप शिखरों को तोड़ने के लिए वज्रदण्ड स्वरूप प्रचण्ड सूरसेन नृपति है || ९ || उस राजा के अन्तःपुर की ज्ञानवान् विजयादेवी प्रधान रानी है ॥१०॥ इसी राजा के शासन के अन्तर्गत सुन्दर कुरुदेश ( कुरुक्षेत्र ) है । ( उसमें ) धन-धान्य से परिपूर्ण गजपुर ( हस्तिनापुर ) नाम का ( नगर है ) ||११|| वहाँ अति बलशाली देवदत्त राजा देवश्री भार्या में मग्न रहता है ||१२|| निज तेज से जिसके द्वारा सूर्य भी जीत लिया गया है ( वह ) पृथिवी पर सभी राजाओं के द्वारा पूजा जाता है ||१३|| गजपुर के राजा को मन में सूरसेन अच्छा लगता है ||१४|| उसने उस राजा ( सूरसेन ) को देश, घोड़े, हाथी, चंवर, छत्र और कोष देकर संतुष्ट किया || १५ || वहाँ राजा सूरसेन जब तक रहता है उसके साथ विजयादेवी रहती है ||१६|| बुद्धि से वृहस्पति के समान, हजारों प्राणियों पर दया करनेवाला वह राजा भोगों को भोगता है ||१७|| उसी समय पूर्व कृत भावनाओं के द्वारा और चारण ऋद्धिधारी युगल मुनियों को ( पूर्वभव में ) दान दिये जाने से धण्णंकर और पुण्णंकर
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