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प्रथम परिच्छेद
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व्यापारी जहाँ पदार्थों का व्यापार करते हैं, मार्ग लोगों के कोलाहल से पूर्ण रहते हैं, जहाँ धन-सम्पन्न लोग रहते हैं, जहाँ दुकानों में विविध प्रकार की सामग्री भरी पड़ी रहती है, (जहाँ ) कसौटियों पर भौम्यखण्डों (स्वर्ण, रजत आदि) को कसा जाता है, जहाँ नित्य अर्चना, पूजा, दान से सुशोभित शुद्धनिर्मल-बुद्धि से सम्पन्न महाजन निवास करते हैं, जहां उत्तम चारों वर्ण के लोग पुण्य से प्राप्त दिव्य-भोग भोगते हुए विचरण करते हैं, जहाँ सभी आचार-व्यवहार से परिपूर्ण हैं, भव्य पुरुष (जहाँ ) सप्त व्यसनों और मद से रहित हैं, सोने के कणों से विशेष रूप से मण्डित (और) सभी प्रकार के शृंगार किये हुए सौभाग्य की निधान, जैनधर्म और शीलगुण से युक्त जहाँ की मानिनो नारियाँ मानपूर्वक श्रेष्ठ लीलायें किया करती हैं, जहाँ चोर, कपटी, लुटेरे, दुष्ट, दुर्जन, क्षुद्र, खल, पिशुन, धृष्ट, दुखी एवं अनाथ जन पृथिवी पर दिखाई नहीं देते । सभी जन प्रवीण और प्रेमासक्त हैं । जहाँ घोड़ों के खुरों से दलित मार्ग सुशोभित रहते हैं, धरातल पान के रंग में रँगा रहता है (ऐसा एक ) रुहियास नाम का सुन्दर (नगर) कहा है ॥१-१६ ॥
घत्ता - सुख, समृद्धि एवं यश के लिए मानो यह रत्नाकर था, बुधजनों से युक्त मानों यह इन्द्रपुरी ही था । शास्त्रार्थों से सुशोभित तथा जनमन को मोहित करनेवाले सर्वश्रेष्ठ नगरों का मानों यह गुरु ही था || ३ ||
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ग्रंथ-प्रणयन-प्रेरक चौधरी देवराज की वंश-परम्परा
वैरियों को भय उत्पन्न करनेवाले शाहंसाह राजा सिकन्दर उस नगरी में अपनी प्रजा का पालन करता है। उस राज्य में दुखी जनों का पोषक, गुणों का निधान और व्यापारियों में प्रधान व्यापारी रहता है । वह अग्रवाल अन्वय रूपी कमल के लिए सूर्य और सिंहल (गोत्र) रूपी पानी में होनेवाले नीले कमल के लिए चन्द्रमा के समान ( था ) | ( वह) मिथ्यात्व, सप्त-व्यसन (और) इन्द्रिय-वासनाओं से विरक्त तथा जिन - शासन और निर्ग्रन्थों के चरणों का भक्त था । ( उसका ) नाम चौधरी चीमा था । वह (अपने वंश का भूषण और सुजनों का पोषक तथा ( उन्हें) संतुष्ट रखनेवाला था | माल्हाही नाम की उसकी स्त्री थी । ( वह) मीठी वाणी बोलती थी । गुणों के समूह और शील की खदान थी । उसका पुत्र चौधरी करमचन्द अर्हन्तों का सेवक और अनुपम गुणों का निवास स्थल था । जिसके
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