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प्रथम परिच्छेद
वे हाथ सफल हैं जो ( आपकी ) पूजा रचाते हैं ||८|| वे कर्ण धन्य हैं (जो) गुणीजनों के समूह को सुनते हैं । वे नेत्र धन्य हैं ( जो ) आपकी छवि के दर्शन करते हैं || ९ || वह रसना धन्य है जो ) आपके गुणों में आसक्त दिखाई देती है । यहाँ साधु पुरुष वही है जो आपका अनुगमन करता हे ॥ १० ॥ धन वह है जो आपके चरणों की पुजा के काम आता है। हृदय वह है जहाँ आपका और सम्पूर्ण व्रतों का आवास होता है || ११ || आपकी ज्ञानकिरण के प्रकाश से मिथ्यात्व वैसे ही विलीन हो जाता है जैसे प्रकाश के आगे उल्लू पक्षी || १२ || आप परमपद मुझे भी दें । दुर्गति में पड़ने से ( पहले ) मुझे छीन लो अर्थात् बचाओ || १३|| इस प्रकार जो कामवाण से विद्ध नहीं हुए उन वीर की ललित अक्षरों से ( श्रेणिक ) स्तुति करता है ।। १४ ।।
घत्ता - तीन प्रदक्षिणाएँ देकर तथा भक्ति करके ज्ञानमय जिनेन्द्र ( वीर ) की वन्दना को । ( इसके पश्चात् ) यतीश्वरों में प्रधान गौतमगणधर की विहँसकर वन्दना करके ( श्रेणिक ) मनुष्यों के कक्ष में बैठ
गया ॥ १-१०॥
[ १-११ ]
राजा श्रेणिक का ग्वालवाल के सम्बन्ध में प्रश्न और गौतम गणधर द्वारा समाधान
७७.
( राजा श्रेणिक समवशरण में ) वह मुनि और श्रावक-धर्म सुना जिससे देव और मनुष्य मोक्ष - गमन प्राप्त करता है || १ || इसके पश्चात् उचित अवसर पाकर राजा के द्वारा भली प्रकार ललित अक्षरों से पूछा गया ||२|| - हे प्रवीण ! जो निम्न जाति का था वह अहीर का बालक सुरलोक (स्वर्ग) क्यों गया ? बताइए || ३ || गौतम गणधर भी ऐसा सुनकर ( महावीर को नमन करते हुए ) कहते हैं- - उस बालक का नाम धष्णंकर है ||४|| हे राजन् ! सावधान होकर सुनो- द्वीपों में जम्बूद्वीप एक प्रधान द्वीप है ||५|| उसके मध्य में कनकाचल सुशोभित होता है । वह ऐसा प्रतीत होता है मानो विधाता ने भूमि को मापने के लिए दण्ड का निर्माण किया हो ||६|| उसकी दक्षिण दिशा में भरतक्षेत्र है जहाँ देव, मनुष्य और विद्याधरों के घर हैं ||७|| जहाँ सुन्दर नगर हैं, पुण्यायतन स्वरूप सघन वृक्ष हैं ||८|| जहाँ हंस और कमलों से मण्डित सरोवर निरन्तर सुशोभित रहते हैं || ९ || जहाँ गो-धन से गोकुल सुशोभित होता है, सफेद बदक पक्षियों से तालाब
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