Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 10
________________ [१०२] अकयालोयणे चेव जन-रंजवणे तहा । अज्झयणं-१, उद्देसो नाहं काहामि पच्छित्तं छम्मालोयणमेव य ।। [१०३] माया-डंभ-पवंची य प्र-कड-तव-चरणं कहे । पच्छित्तं नत्थि मे किंवि न कया लोयण च्चरे ।। [१०४] आसन्नालोयणक्खाई लहु-लहु-पच्छित्त-जायगे । अम्हानालोइयणं चिढे मुहबंधालोयगे तहा || [१०५] गुरु-पच्छित्ताऽहमसक्के य गिलाणालंबणं कहे । अरडालोयगे साहू सुण्णा ऽसुण्णी तहेव य ।। [१०६] निच्छिन्ने वि य पच्छित्ते न काहं वुढिजायगे । रंजवण-मेत्तलोगाणं वाया-पच्छित्ते तहा ।। [१०७] पडिवज्जण-पच्छित्ते चिर-याल-पवेसगे तहा । अननुट्ठिय-पायच्छित्ते अनुभणिय ऽन्नहाऽऽयरे तहा ।। [१०८] आउट्टीय महा-पावे कंदप्पा-दप्पे तहा । अजयणा-सेवणे तह य सुया सुय-पच्छित्ते तहा ।। [१०९] दिट्ठ-पोत्थय-पच्छित्ते सयं पच्छित्त-कप्पगे । एवइयं एत्थ पच्छित्तं पुव्वालोइय-मनुस्सरे ।। [११०] जाती-मय-संकिए चेव कुल-मय-संकिए तहा । जाती-कुलोभय-मयासंके स्त-लाभिस्सरिय-संकिए तहा ।। [१११] तवो-मया-संकिए चेव पंडिच्च-मय-संकिए तहा । सक्कार-मय-लुद्धे य गारव-संदूसिए तहा ।। [११२] अपुज्जो वा विहं जम्मे एगजम्मेव चिंतगे । पाविट्ठाणं पि पावतरे सकलुस-चित्तालोयगे ।। [११३] पर-कहावगे चेव अविनयालोयगे तहा । अविहि-आलोयगे साहू एवमादी दुरप्पणो ।। [११४] अनंतेऽनाइ-कालेणं गोयमा ! अत्त-दुक्खिया । अहो अहो ! जाव सत्तमियं भाव-दोसेक्कओ गए || [११५] गोयम! नंते चिट्ठति जे अनादीए ससल्लिए | निय-भाव-दोस-सल्लाणं भुजंते विरसं फलं ।। [११६] चिट्ठइसंति अज्जावि तेणं सल्लेण सल्लिए । अनंतं पि अनागयं कालं तम्हा सल्लं न धारए खणं मुणि ।। त्ति [११७] गोयम! समणीण नो संखा जाओ निक्कलुस-नीसल्ल-विसुद्ध-सुनिम्मल-विमलमानसाओ अज्झप्पविसोहिए आलोइत्ताण सुपरिफुडं नीसंकं निखिलं निरावयवं निय-दुच्चरियमादीयं सव्वं पि भावसल्लं । अहारिहं तवो-कम्मं पायच्छित्तमनुचरित्ताणं निद्धोयपाव-कम्म-मल-लेव-कलंकाओ उप्पन्नदिव्व-वर-केवलनाणाओ महानुभागाओ महायसाओ महा-सत्त-संपन्नाओ-सुगहिय नामधेज्जाओ अनंतुत्तम[दीपरत्नसागर संशोधितः] [9] [३९-महानिसीह

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