Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
________________
८५] तं चायरामि पच्छित्तं जेणागच्छड केवली ।
अज्झयणं-१, उद्देसो
तं चायरामि जेण तवं सफलं होइ केवली ।। [८६] किं पच्छित्तं चरंतोऽहं चिटुं नो तव-केवली ।
जिणाणमाणं न लंघे ऽहं पाण-परिच्चयण-केवली ।। [८७] अन्नं होही सरीरं मे नो बोही चेव केवली ।
सुलद्धमिणं सरीरेणं पाव-निड्डहण-केवली ।। अनाइ-पाव-कम्म-मलं निरोवेमीह केवली । बीयं तं न समायरियं पमाया केवली तहा ।। दे दे ! खवओ सरीरं मे निज्जरा भवउ केवली | सरीरस्स संजमं सारं निक्कलंकं तु केवली ।। मनसा वि खंडिए सीले पाणे न धरामि केवली ।
एवं वइ-काय-जोगेणं सीले रक्खे अहं केवली ।। [९१] एवमादी अनादीया कालाओ नंते मुनी ।
केइ आलोयणा सिद्धे पच्छित्ता केइ गोयमा [९२] खंता दंता विमुत्ता य जिइंदी सच्च-भासिणो ।
छक्काय-समारंभाओ विरते तिविहेण 3 ।। ति-दंडासव-विरया य इत्थि-कहा-संग-वज्जिया । इत्थी-संलाव-विरया य अंगोवंग- निरिक्खणा ।। निम्ममत्ता सरीरे वि अप्पडिबद्धा महायसा । भीया च्छि-च्छि-गब्भवसहीणं बहु-दुक्खाउ भवाउ तहा ।। तो एरिसेण भावेणं दायव्वा आलोयणा |
पच्छित्तं पि य कायव्वं तहा जहा चेवेएहिं कयं ।। [९६] न पुणो तहा आलोएयव्वं माया-डंभेण केणई ।
जह आलोएमाणाणं चेव-संसार-वुड्ढी भवे ।। [९७] अनंतेऽनाइकालाओ अत्त-कम्मेहिं दुम्मई ।
बहुविकप्प-कल्लोले आलोएंतो वी अहोगए ।। ९८] गोयम! केसिं चि नामाइं साहिमो तं निबोधय
जे सा ssलोयण-पच्छित्ते भाव-दोसेक्क-कलुसिए । [९९] ससल्ले घोर-महं दुक्खं दुरहियासं सु-दूसहं ।
अनुहवंति वि चिट्ठति पाव-कम्मे नराहमे ।। [१००] गुरुगा संजमे नाम साहू निद्धंधसे तहा ।
दिट्ठि-वाया-कुसीले य मन-क्सीले तहेव य ।। [१०१] सुहमालोयगे तह य परववएसालोयगे तहा |
किं चालोयगे तह य न किंचालोयगे तहा ।।
दीपरत्नसागर संशोधितः]
[8]
[३९-महानिसीह
Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 153