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समीक्षात्मक अध्ययन/५१. प्रस्तुत अध्ययन की ४४ और ४५ वीं गाथा में जो वर्णन है, वह वर्णन जातक के अठारहवें श्लोक में दी गई कथा से जान सकते हैं। वह प्रसंग इस प्रकार है-जब पुरोहित का सम्पूर्ण परिवार प्रवजित हो जाता है, राजा उसका सारा धन मंगवाता है। रानी को परिज्ञात होने पर उसने राजा को समझाने के लिए एक उपाय किया। राजप्रांगण में कसाई के घर से मांस मंगवा कर चारों ओर बिखेर दिया। सीधे मार्ग को छोड़कर सभी तरफ जाल लगवा दिया। मांस को देखकर दूर-दूर से गद्ध आये। उन्होंने भरपेट मांस खाया। जो गिद्ध समझदार थे, उन्होने सोचा-हम मांस खाकर बहुत ही भारी हो चुके हैं, जिससे हम सीधे नहीं उड़ सकेंगे। उन्होंने खाया हुआ मांस वमन के द्वारा बाहर निकाल दिया। हल्के होकर सीधे मार्ग से उड़ गये, वे जाल में नहीं फंसे। पर जो गिद्ध बुद्ध थे, वे प्रसन्न होकर गिद्धों के द्वारा वमित मांस को खाकर अत्यधिक भारी हो गये। वे गिद्ध सीधे उड़ नहीं सकते थे। टेढ़े-मेढ़े उड़ने से वे जाल में फँस गये। उन फंसे हुए गिद्धों में से एक गिद्ध महारानी के पास लाया गया। महारानी ने राजा से निवेदन किया-आप भी गवाक्ष से राजप्रांगण में गिद्धों का दृश्य देखें। जो गिद्ध खाकर वमन कर रहे हैं, वे अनन्त आकाश में उड़े जा रहे हैं और जो खाकर वमन नहीं कर रहे हैं, वे मेरे चंगुल में फँस गये हैं।१५२
सरपेन्टियर ने प्रस्तुत अध्ययन की उनपचास से तिरेपनवीं गाथाओं को मूल नहीं माना है। उनका अभिमत है, ये पाँचों गाथाएँ मूलकथा से सम्बन्धित नहीं हैं, सम्भव है जैन कथाकारों ने बाद में निर्माण कर यहाँ रखा हो१५३ । पर उसका उन्होंने कोई ठोस आधार नहीं दिया है। ___प्रस्तुत कथानक में आये हुए संवाद से मिलता-जुलता वर्णन मार्कण्डेय पुराण में भी प्राप्त होता है। वहाँ पर जैमिनि ने पक्षियों से प्राणियों के जन्म आदि के सम्बन्ध में विविध जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की हैं। उन जिज्ञासाओं के समाधान में उन्होंने एक संवाद प्रस्तुत किया - भार्गव ब्राह्मण ने अपने पुत्र धर्मात्मा सुमति को कहा - वत्स! पहले वेदों का अध्ययन करके गुरु की सेवा-शुश्रूषा कर, गार्हस्थ्य जीवन सम्पन्न कर, यज्ञ आदि कर। फिर पुत्रों को जन्म देकर संन्यास ग्रहण करना, उससे पहले नहीं।२५४ सुमति ने पिता से निवेदन किया - पिताजी! जिन क्रियाओं को करने का आप मुझे आदेश दे रहे हैं, वे क्रियाएँ मैं अनेक बार कर चुका हूँ। मैंने विविध शास्त्रों का व शिल्पों का अध्ययन भी अनेक बार किया है। मुझे यह अच्छी तरह से परिज्ञात हो गया है कि मेरे लिए वेदों का क्या प्रयोजन है ?१५५ मैंने इस विराट् विश्व में बहुत ही परिभ्रमण किया है। अनेक माता-पिता के साथ मेरा सम्बन्ध हुआ। संयोग और वियोग की घड़ियाँ भी देखने को मिली। विविध प्रकार के सुखों और दुःखों का अनुभव किया। इस प्रकार जन्म-मरण को प्राप्त करते-करते मुझे ज्ञान की अनुभूति हुई है। पूर्व जन्मों को मैं स्पष्ट रूप से देख रहा हूँ। मोक्ष में सहायक जो ज्ञान है वह मुझे प्राप्त हो चुका है। उस ज्ञान की प्राप्ति के बाद यज्ञ-याग, वेदों की क्रिया मुझे संगत नहीं लगती। अब मुझे आत्मज्ञान हो चुका है और उसी उत्कृष्ट ज्ञान से ब्रह्म की प्राप्ति होगी।१५६
भार्गव ने कहा - वत्स! तू ऐसी बहकी-बहकी बातें कर रहा है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि किसी ऋषि या देव ने तुझे शाप दिया है, जिससे यह तेरी स्थिति हई है।१५७
१५२. जातक संख्या ५०९, ५ वां खण्ड, पृष्ठ ७५. १५३. The Verses from 49 to the end of the chapter certainly do not belong to original legend, But must
have been composed by the Jain author. -The Uttaradhyana Sutra, Page-335 १५४. मार्कण्डेय पुराण-१०/११, १२
१५५. मार्कण्डेय पुराण-१०/१६, १७ १५६. मार्कण्डेय पुराण-१०/२७, २८, २९
१५७. मार्कण्डेय पुराण-१०/३४, ३५