Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
आहिया|अणुभावे रिसे वुत्ते, एवमेताणि वीसति ॥९॥ वड्डोवड्डी मुहुत्ताणे, अद्धमंडल संटिइ।किंते चिण्णं पडिचरंत्ति, अंतरं किं चरंतिया॥१०॥उग्गहति कवतियं, केवतियं । • इस तरह मूल पाहुई बीम है. जिन के तीन पाहुडे में अंतर पाहुड़े हैं, सत्तर पाहुडे में अंतर पाहुडे नहीं हैं. मूल पाहा को अंतर पाहुडा सरीखे के एक गिन कर और अन्तर पाहुडे पचास और अन्यनियर्थी की प्ररूपणा रूप पटिवृत्त सत्र मील कर ३५७ होवे॥२॥ और पाहुड़े का कथन करते हैं. प्रथम पाहुडे के प्रथम अंतर पाहुडे में सूर्य मंडल कितने हैं, और रात्रिदिन की छानिवृद्धि का कथन है, दुसरे अंतर पाहु में सूर्य मंडल अर्ध उत्तर दक्षिण चलें उस का कथन है, में तीसरा अंतर पाहुडा में मूर्य कितना क्षेत्र स्पर्श कर दूसरे क्षेत्रका आचरण करे,जम्बूद्वीपमें दो सूर्य हैं, उनमें कौनसा सूर्य भरतकाकारमा
बत का है. स्वतःकी तरफ सतःक मांडले कौन से और अन्य के मांडले कौन स. यह कथन चौथा अंतर पाहुडा में हैं, दोनो सूर्य कितने अंतर से चलन है, सो कहा है. इस में अन्य तीथि की प्ररूपणा रूप छ पहिवृत्तियो कही है. ॥ १०॥ पांचवे अंतर पाहड में स्यं कितना क्षेत्र आगाह कर चलते उस में अन्य तीर्थ की प्ररूपणा रूप पांच पडिवृत्तियों कही है, छठे अंतर पाहुरे में सूर्य क्षत्र उल्लंच कर चलना है इसका कथन है. इस में अन्यतीथि की प्ररूपणा रूप सात पत्तियों
सातव अंतर पाहड में सूर्यादिक के मंडल कौन से संस्थान वाले है. इसमें अन्यतीर्थ की प्ररूपण रूप आठ पावृत्तियों हैं. ८ बाठ व अंतर पाहुडे में सूर्य मंडल का जाडपन, चौहाई व परिधि
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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पण
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