Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly
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|२ फुट्टहडाहडसीसे मच्छियाचडगरपहरेणं अण्णिजमाणमग्गे भियग्गामे णगरे गिहे २ कालुणवडियाए वित्तिं कप्पेमाणे विहरति, तेणं कालेणं० समणे भगवं महावीरे जाव समोसरिते जाव परिसा निग्गया, तते णं से विजये खत्तिए इभीसे कहाए लद्धढे समाणे जहा कूणिए तह निग्गते जाव पज्जुवासति, तते णं से जातिअंधे पुरिसे तं महयाजणसदं च जाव सुणेत्ता तं पुरिसं एवं व०किण्णं देवाणुप्पिया! अज्ज मियग्गामे नयरे इंदमहेति वा जाव निग्गच्छति?, तते णं से पुरिसे तं जातिअंधपुरिसं एवं व०- नो
खलु देवा० इंदमहे जाव निग्गए, एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे जाव विहरति, तते णं एए जाव निग्गच्छंति, तते णं से जातिअंधपुरिसे |तं पुरिसं एवं व०-गच्छामो णं देवाणुप्पिया! अम्हेवि समणं भगवं जाव पज्जुवासामो, तते णं से जातिअंधपुरिसे पुरतो दंडएणं पगड्ढिजमाणे २ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागते त्ता तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति त्ता वंदति नभंसति त्ता जाव पज्जुवासति, तते णं समणे० विजयस्स० तीसे य० धम्ममाइक्खइ० परिसा जाव पडिगया विजएवि गए।३। तेणं कालेणं० समणस्स जेटे अंतेवासी इंदभूती णामं अणगारे जाव विहरति, तते णं से भगवं गोतमे तं जातिअंधपुरिसं पासति त्ता जायर ३० जाव एवं व०-अस्थि णं भंते! केई पुरिसे जातिअंधे आय(जाइ)अंधारूवे ?, हंता अस्थि, कहिं णं भंते! से पुरिसे जातिअंधे जातिअंधारूवे?, एवं खलु गोतमा! इहेव भियग्गामे णगरे विजयस्स पुत्ते मियादेवीए अत्तए मियाउत्ते णामं दारए जातिअंधे जातिअंधारूवे, नस्थि णं तस्स दारगस्स जाव आगतिमित्ते, तते णं सा मियादेवी जाव पडिजागरमाणी २ विहरति, तते णं से ॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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