Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
||गणियाए गिहाओ निच्छुभावेति त्ता सुदंसणियं गणियं अब्भिंतयं ठावेति त्ता सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति, तते णं से सगडे दारए सुदरिसणाए गिहाओ निच्छूढे समाणे अण्णत्थ कत्थवि सतिं वा० अलभमाणे अण्णया कयाई रहस्सियं सुदरिसणागिहं अणुपविसति त्ता सुदरिसणाए सद्धिं उरालाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति, इमं च णं सुसेणे अमच्चे हाते जाव विभूसिते मणुस्सवगुराए परिक्खित्ते जेणेव सुदरिसणागणियाए गिहे तेणेव उवा० त्ता सगडं दारयं सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं उसलाई भोगभोगाई भुंजमाणं पासति त्ता आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं णिलाडे | साहटु सगडं दारयं पुरिसेहिं गेण्हावेति त्ता अट्ठि जाव महियं करेति त्ता अयओडगबंधणं करेति त्ता जेणेव महचंदे राया तेणेव उवा० करयल० जाव एवं व०-एवं खलु सामी! सगडे दारए ममं अंतेपुरंसि अवरद्धे, तते णं महचंदे राया सुसेणं अमच्चं एवं व०-तुम चेव णं देवाणु०! सगडस्स दारगस्स दंड णिव्वत्तेहि, तए णं से सुसेणे अभच्चे महचंदेणं रण्णा अब्भणुण्णाए समाणे सगडं दास्यं सुदरिसणं च गणियं एएणं विहाणेणं वझं आणावेति, तं एवं खलु गोतमा! सगडे दारए पुरा पोराणाणं दुच्छिण्णाणं जाव विहरति ।२१। सगडे णं भंते! दारए कालगते कहिं गच्छिहिति कहिं उववज्जिहिति?, गोतमा! सगडे णं दारए सत्तावण्णं वासाई परमाउं पालयित्ता अजेव तिभागावसेसे दिवसे एगं महं अओमयं तत्तसमजोइभूयं इस्थिपडिभ अवयासाविए समाणे कालमासे कालं किच्चा इभीसे रयणप्पभाए पुढवीए णेरइयत्ताए उववजिहिति से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता रायगिहे णगरे मातंगकुलंसि ॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82