Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir य करोडियाण य कप्पडियाण य आउराण य अप्पेगतियाणं मच्छमंसाई उवदिसति अप्पे० कच्छभूमं० अप्पे० गाहमं० अप्पेο मगरमं० अप्पे० सुंसुमारमं० अप्पे० अयमंसाई एवं एलरोज्झसूयर मिगससयगोमहिसमंसाई अप्पे तित्तिरमंसाई अप्पे० वट्ट० कलावक० कवोत० कुक्कुडमयूर० अण्णेसिं च बहूणं जलयर थलयर खहयरमादीणं मंसाई उवदंसेति अप्पणावि य णं से धण्णंतरी वेज्जे तेहिं बहूहिं मच्छमंसेहि य जाव मयूरमंसेहि य० अण्णेहिं बहूहि य जलयर थलयरखहयर मंसेहि य मच्छर सेहि य जाव मयूररसेहि य सोल्लेहिंतलिएहिं भज्जिएहि य सुरं च० आसाएमाणे० विहरति, तते णं से धण्णंतरी वेज्जे एयकम्मे सुबहं पावकम्मं समज्जिणित्ता बत्तीसं वाससताई परमाउं पालयित्ता कालमासे कालं किच्चा छट्टीए पुढवीए उक्कोसेणं बावीससागरोवम० उववण्णे, तते णं सा गंगदत्ता भारिया जाव शिंदुया यावि होत्था जाता २ दारगा विणिघायमावज्जंति, तते णं तीसं गंगदत्ताए सत्थवाहीए अण्णया क्याई । पुव्वरत्तावरत० कुटुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए० समुप्पण्णेएवं खलु अहं सागरदत्तेणं सत्थवाहेणं सद्धिं बहूई वास्ताई उरालाई माणुस्सगाई भोग भोगाई भुंजमाणी विहरामि णो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ सपुण्णाओ कयत्थाओ कयलक्खणाओ सुलद्धे णं तासिं अम्मयाणं माणुस्सए जम्मजीवियफले जासिं भण्णे नियगकुच्छिसंभूयाई थणदुद्धलुद्धगाई महरसमुल्लावगाई मम्मणपयंपियाई थणमूलकक्खदेसभागं अभिसरमाणगाई पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गेण्हिऊणं उच्छंगनिवेसियाई दिंति समुल्लावए सुमहरे पुणो २ मंजुलप्पभणिते अहं णं अधण्णा अपुण्णा ॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित ૪૪ For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82