Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly
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उवसंपज्जित्ताणं विहरति, तते णं से सोरिए दारए मच्छंधे जाते अधम्मिए दुष्पडियाणंदे, तते णं तस्स सोरियमच्छंधस्स बहवे पुरिसा दिण्णभति० कल्लाकलिं एगट्ठियाहिं जउणं महाणदिं ओगाहिंति त्ता बहूहि य दहगललणेहि य दहमलणेहि य दहमद्दणेहि य दहमहणेहि य दहवहणेहि य दहपवाहणेहि य अयंपुलेहि य पयंपुलेहि य जंभाहि य तिसराहि य भिसराहि य घिसराहि य विसराहि य हिल्लीरीहि य झिलिरीहि य लल्लिरीहि य जालेहिय गलेहि य कूडपासेहि य वक्कबंधेहि य सुत्तबंधेहि य वालबंधेहि य बहवे सोहमच्छे य जाव पडागातिपडागे य गेण्हंति त्ता एगढियाउ भरेंति त्ता कूलं गाहेंतित्ता मच्छखलए करेंति आयवंसि दलयंति अप्पणाऽविय णं| से सोरिये मच्छंधए कल्लाकलिं एगहिताए जउणं महाणदि ओगाहेति त्ता सरिसवच्छिद्दपमाणमेत्तेणं जालेणं बहवे सहमच्छे य जाव| गण्हति एगढ़ियं भरेति कूलंगाहेति त्ता मच्छखलए करेति आयवंसि दलयति, अण्णे य से बहवे पुरिसा दिण्णभइभत्त० आयवतत्तएहिं मच्छेहिं सोल्लिएहि य तलिएहिं भजितेहि य रायमगंसि वित्तिं कम्पेमाणा विहरंति, अप्पणाविय से सोरियदत्ते बहूहिं सोहमच्छेहि जाव पडागा० सोल्लिएहि य त० भ० सुरं च० आसादे० विहरति,तते णं तस्स सोरियदत्तस्स मच्छंधस्स अण्णया कयाई ते मच्छ० सोल्ले य तलि० भजि० आहारेमाणस्स मच्छकंटए गलए लग्गे यावि होत्था,तते णं से सोरिय० महईए वेयणाए अभिभूते समाणे कोडुंबियपुरिसे सहावेति त्ता एवं व०-गच्छह णं तुब्भे देवा०! सोरियपुरे णगरे सिंघाडगजावपहेसु महया सद्देणं उग्धोसेमाणा २ |एवं वयह एवं खलु देवा०! सोरियस्स मच्छकंटए गले लग्गे तं जो णं इच्छति वेजो वा० सोरियमच्छियस्स मच्छकंटयं गलाओ ॥ श्री विपाक्दशाङ्गम् ॥
पू.सागरजी म. संशोधित
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