Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly

View full book text
Previous | Next

Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir छागलियस्स उवणेति, अण्णे य से बहवे पुरिसा ताई बहुयाई अयमंसाई जाव महिसमसाई तवएसु र कवल्लीसु य कंदूएसु य|| भजणएसु इंगालेसु य तलेंति य भजति य सोलिंति यत्ता य रायमगंसि वित्तिं कथ्यमाणा विहरंति, अप्पणावियणं से छण्णियए छागलिए तेहिं बहूहिं अयमंसेहि य जाव महिसमंसेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च० आसादेमाणे० विहरति, तते णं से छण्णिए छागलिए एयकम्मे० सुबहुं पावकम्म कलिकलुसं समजिणित्ता सत्तवाससयाई परमाउं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा चउत्थीए पुढवीए उक्कोसेणं दससागरोवमठितीएसु णेरइएसु णेरइयत्ताए उववण्णे १२० तते णं सा तस्स सुभहस्स सत्थवाहस्स भद्दा भारिया जाव शिंदुया यावि होत्था जाता २ दारगा विणिहायमावजंति, तते णं से छण्णिए छागलिए चउत्थीए पुढवीए अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव साहंजणीए णयरीए सुभहस्स सत्यवाहस्स भदाए भारियाए कुच्छिंसि पुत्तत्ताए उववण्णे, तते णं सा भद्दा सत्थवाही अण्णया कयाई णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दारगं पयाया, तते णं तं दारगं अम्मापियरो जायमेत्तं चेव सगडस्स हेढ़ओ ठवेति त्ता दोच्चंपि गेण्हाति अणुपुवेणं सारक्खंति संगोति संवड्डेति जहा उझियए जाव जम्हा णं अम्हं इमे दारए जायमेत्तए चेव सगडस्स हेट्टओ ठविते तम्हा णं होउ णं अहं एस दारए सगडे नामेणं सेसं जहा उझियए, सुभद्दे लवणे कालगओ मायावि कालगता सेवि गिहाओ निच्छूढे, तते णं से सगडे दारए साओ गिहाओ निच्छूढे समाणे सिंघाडग० तहेव जाव सुदरिसणाए गणियाए सद्धिं संपलग्गे यावि होत्था, तते णं से सुसेणे अभच्चे तं सगडं दारयं अण्णया कयाई सुदरिसणाए || ॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित | ३२ For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82