Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaith.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyarmandir विडलं असणं० सुरं च० आसाए० पमत्ते विहरति, तते णं से महब्बले राया कोडुंबियपुरिसे सहावेति त्ता एवं ३०-गच्छह णं तुब्भे देवाणु० पुरिमतालस्स नगरस्स दुवाराई पिधेह त्ता अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गेण्हह ता ममं उवणेह तते णं ते कोडुबिया कयल जाव पडिसुणेति त्ता पुरिमतालस्स नगरस्स दुवाराई पिहेंति अभग्गसेणं चोरसे० जीवग्गाहं गेण्हंति महब्बलस्स रण्णो उवणेति, तते णं से महब्बले राया अभग्गसेणं चोरसे० एतेणं विहाणेणं वन्झं आणवेति, एवं खलु गोतमा! अभग्गसेणे चोरसेणावती पुरा जाव विहरति, अभग्गसेणे णं भंते! चोरसेणावती कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिइ कहिं उववजिहिति?, गोतमा! अभग्गसेणे चोरसे! सत्ततीसं वासाई परमाउयं पालइत्ता अजेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे को समाणे कालगते इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोस० नेरइएसु उववजिहिति, से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता एवं संसारो जहा पढमे जाव पुढवीए ततो उव्वट्टित्ता वाणारसीए णगरीए सूयरत्ताए पच्चायाहिति से णं तत्थ सोयरिएहिं जीवियाउ ववरोविए समाणे तत्थेव वाणारसीए णगरीए सेटिकुलंसि पुत्त(प्र० मत्ताए पच्चायाहिति, से णं तत्थ् उम्मुक्कबालभावे एवं जहा पढमे जाव अंतं काहितिी निक्खेवो ||१९॥ इति अभग्गसेणझयणं ३॥ जति णं भंते!० चउत्थस्स उक्खेवो, एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं० साहंजणी णाम णगरी होत्था रिद्धस्थिमिय०, तीसे णं साहंजणीए बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए देवरमणे णाम उजाणे होत्या, तत्य णं अमोहस्स जक्खस्स जक्वायतणे होत्था ॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥] पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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