Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly
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॥ श्रीविपाकदशाङ्गम् ॥
तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा गाणं णयरी होत्था वण्णओ, पुण्णभद्दे चेइए वण्णओ, तेणं कालेणं० समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अजसुहम्मे णामं अणगारे जाइसंपण्णे वण्णओ चोहसपुची चणाणोवगए पंचहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुब्विं जाव जेणेव पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं जाव विहरइ, परिसा निग्गया, धम्म सोच्चा निसम्म जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया, तेणं कालेणं० अजसुहम्मस्स अंतेवासी अज्जजंबूणामं अणगारे सत्तुस्सेहे जहा गोयमसामी तहा जाव झाणकोहोवगए विहरति, तते णं अज्जजंबूणामं अणगारे जायसड्ढे जाव जेणेव अजसुहम्मे अणगारे तेणेव उवागए तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति त्ता वंदति नमंसति त्ता जाव पज्जुवासति त्ता एवं व०-११। जति णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं दसमस्स अंगस्स पण्हावागरणाणं अयमढे पं० एकारसमस णं भंते ! अंगस्स विवागसुयस्स समणेणं जाव संपत्तेणं के अटे पं० ?, तते णं अजसुहम्मे अणगारे जंबू अणगारं एवं व०-एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं एकारसमस्स अंगस्स विवागसुयस्स दो सुयक्खंधा पं० २०-दुहविवागा य सुहविवागा य, जति णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेणं एक्कारसमस्स अंगस्स ॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥
पू.सागरजी म.संशोधित
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