Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कामझ्याए गणियाए सद्धिं संपलग्गे जाते यावि होत्था कामझ्याए गणियाए सद्धिं विउलाई उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति, तते णं तस्स मित्तस्स रण्णो अण्णया कयाई सिरीए देवीए जोणिसूले पाउब्भूते यावि होत्था, नो संचाएनि विजयमित्ते राया सिरीए देवीए सद्धिं उरालाई माणुसगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए तते णं से विजयभित्ते राया अण्णया क्याती उझिययं दारयं कामझ्याए गणिगाए गेहाओ णिच्छुभावेइ त्ता कामझ्यं गणियं अभितरियं ठावेति त्ता कामझ्याए गणिगाए सद्धिं उरालाइं जाव विहरति, तते णं से उझियए दारए कामझ्याए गणियाए गिहातो निच्छुभिए समाणे कामझ्याए| गणियाए मुच्छिते गिद्धे गढिते अन्झोववण्णे अण्णत्थ कत्थई सुई चरतिं च धितिं च अविंदमाणे तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदझवसाणे तदट्ठोवउत्ते त्यप्पियकरणे तब्भावणाभाविते कामझ्याए गणियाए बहूणि अंतराणि य छिद्दाणि य विवराणि य पडिजागरमाणे २ विहरति, तए णं से उज्झियए दारए अण्णया कयाई कामज्झ्याए गणियाए अंतरं लभेति कामज्झ्याए गणियाए गिह रहस्सियगं अणुप्पविसइ त्ता कामज्झ्याए गणियाए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति, इमं च णं भित्ते राया ग्रहाते जाव पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिते मणुस्सवगुरापरिक्खित्ते जेणेव कामझ्याए गणियाए गिहे तेणेव उवागच्छति चा तत्थ णं उझ्यियं दारयं कामझ्याए गणियाए सद्धिं उरालाई भोगभोगाई जाव विहरमाणं पासति त्ता आसुरुत्ते० तिवलियभिडिं निडाले साहटु उझिययं दारयं पुरिसेहिं गेहावेति त्ता अद्विमुट्ठिजाणुकोप्परपहारसंभग्गमहितगत्तं करेति त्ता अवओडगबंधणं करेति त्ता ॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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