Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir इभीसे रयणप्पहाए पुढवीए णेश्यइत्ताते उववजिहिति, ततो सिरीसिवेसु सुंसुमारे संसारो तहेव जहा पढमे जाव पुढवी०, से गं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए महिसत्ताए पच्चायाहिति, से णं तत्थ अण्णया कयाती गोडिल्लिएहिं जीवियाओ ववरोविए समाणे तत्थेव चंपाए नयरीए सेटिकुलंसि पुत्त(प्र० म)त्ताए पच्चायाहिति, से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तहारूवाणं थेराणं अंतिते केवलं बोहिं० अणगारे० सोहम्मे कप्पे० जहा पढमे जाव अंतं करेहित्तिो निक्खेवो॥१३॥ इति उज्झितकाध्ययन २॥ तच्चस्स उक्खेवो, एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं० पुरिमताले णामं णगरे होत्था रिद्ध०, तस्स णं पुरिमतालस्स नगरस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्य णं अमोहदंसी उज्जाणे, तत्थ णं अमोहदंसिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था, तत्थ णं पुरिमताले महब्बले णामं राया होत्या, तस्स णं पुरिमतालस्स णगरस्स उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए देसप्यंते अडवी संठिया, एत्य णं सालाडवी णामं चोरपल्ली होत्था विसमगिरिकंदरकोलंबसण्णिविट्ठा वंसीकलंकपागारपरिक्खित्ता छिण्णसेलविसमप्पवायफरिहोवगूढा अभितरपाणिया सुदुल्लभजलपरंता अणेगखंडीविदितजण दिण्णनिगमप्पवेसा सुबहुयस्सवि कूवियस्स जणस्स दुप्पहंसा यावि होत्या, तत्थ णं सालाडवीए चोरपल्लीए विजए णामं चोरसेणावती परिवसति अहम्मिए जाव विहरइ हणछिन्नभिन्नवियत्तए लोहियपाणी बहुणगरणिग्गतजसे सूरे दढप्पहारी साहसिते सहवेही असिलट्ठिपढममल्ले, से णं तत्थ सालाडवीए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसताणं ॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥ | २१ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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