Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly

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Page 31
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir एएणं विहाणेणं वज्झं आणावेति, एवं खलु गोतमा ! उज्झियए दारए पुरा पोराणाणं कम्माणं जाव पच्चणुभवमाणे विहरति ॥१२॥ उज्झियए णं भंते! दारए इओ कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिहिति कहिं उववज्जिहिति?, गोतमा ! उज्झियए दारए पणवीसं वासाई परमाउं पालइत्ता अज्जेव तिभागावसेसे दिवसे सूलभिण्णे कए समाणे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रइयत्ताए उववज्जिहिति, से णं ततो अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले वानरकुलंसि वाणरत्ताए | उववज्जिहिति, से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे तिरियभोएस मुच्छिते गिद्धे गढिते उज्झोववण्णे जाते जाते वानरपेल्लए वहेहिति तं एयकम्मे० कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इंदपुरे नयरे गणियाकुलंसि पुत्तत्ताए पच्चयाहिति, तते णं तं दारयं अभ्मापितरो जायमेत्तकं वद्धेहिंति नपुंसगकम्मं सिक्खावेहिंति, तते णं तस्स दारगस्स अभ्मापितरो णिव्वत्तबार साहस्स इमं एयारूवं णामधेज्जं करेहिंति, तं०- होउ णं पियसेणे णामं णपुंसए, तते गं से पियसेणे णपुंसते उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुष्पते विण्णायपरिणयमेत्ते रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठे उक्किट्ठसरीरे भविस्सति, तते णं से पियसेणे णपुंसए इंदपुरे णगरे बहवे राईसर जावपभिइओ बहूहिं य विज्जापओगेहि य मंतचुण्णेहि य हियउड्डावणेहि य काउड्डावणेहि य निण्हवणेहि य पण्हवणेहि य वसीकरणेहि य आभिओगिएहि य अभिओगित्ता उरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरिस्सति, तते णं से पियसेणे णपुंसए एयकम्मे० सुबहं पावं कम्मं समजिणित्ता एकवीसं वासस्यं परमाउं पालयित्ता कालमासे कालं किच्चा ॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित २० For Private And Personal

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