Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विहरति, ण मे दिट्ठा णरगा वा णेरड्या वा पच्चक्खं खलु अयं पुरिसे नयपडिरूवियं वेयणं वेएतित्तिकटु मियं देवि आपुच्छति त्ता मियाए देवीए गिहाओ पडिनिक्खमति त्ता भियग्गामं णगरं मझमझेणं निग्गच्छति त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति त्ता वंदति नमंसति त्ता एवं व०-एवं खलु अहं तुब्भेहि अब्भणुण्णाए समाणे मियग्गामं नगरं मझमझेणं अणुपविसामि त्ता जेणेव मियाए देवीए गिहे तेणेव उवागते, तते णं सा मिया देवी मम एज्जमाणं पासति त्ता हट्ठ० तं चेव सव्वं जाव पूयं च सोणियं च आहारेति, तते णं मम इमे अझस्थिते० समुष्पजित्थाअहो णं इमे दारए पुरा जाब विहरति । ४ से णं भंते! पुरिसे पुवभवे के आसी किंनामए वा किंगोत्तए वा कयरंसि गामंसि वा नगरंसिवा किंवा दच्चा किं वा भोच्चा किं वा समायरित्ता केसि वा पुरा पोराणाणं जाव विहरति?, गोयमाई! समणे भगवं महावीरे भगवं गोतम एवं व०-एवं खलु गोतमा! तेणं कालेणं० इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे सयदुवारे णाम णगरे होत्था रिद्धस्थिमित० वण्णओ, तत्थ णं सयदुवारे णगरे धणवती नामं राया होत्था, तस्सणं सयदुवारस्सणगरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरच्छिमे दिसीभाए विजयवद्धमाणे णाम खेडे होत्था रिद्ध०, तस्स णं विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई आभोए यावि होत्था, तत्थ णं विजयवद्धमाणे खेडे एक्काई नाम टुकूडे होत्था अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे, से णं एकाई दृकूडे विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंचण्हं गामसयाणं आहेवच्चं जाव पालेमाणे विहरति, तते णं से एक्काई विजयवद्धमाणस्स खेडस्स पंच गामसयाई बहूहिं ॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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