Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly

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Page 19
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पच्चप्पिण्ह, तते णं ते कोडुबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति, तते णं से विजयवद्धमाणे खेडे इमं एयारूवं उग्घोसणं सोच्चा णिसम्म बहवे वेज्जा य० सत्थकोसहत्थगया सएहिं सएहिं गेहेहितो पडिनिक्खमंति त्ता विजयवद्धमाणस्स खेडस्स मझमझेण जेणेव एगाइरटुकूडस्स गेहे तेणेव उवागच्छंति त्ता एगाइसरीरयं परामुसंति त्ता तेसिं रोगाणं निदाणं पुच्छंति त्ता एक्कातीरटुकूडस्स बहूहिं अब्भंगेहि य उवट्टणाहि य सिणेहपाणेहि य वमणेहि य विरेयणाहि य (प्र० सेयणाहि ) अवद्दाहणाहि य अवण्हाणेहि य अणुवासणाहि य वत्थिकम्मेहि य निरुहेहि य सिरोवेधेहि य तच्छणेहि य पच्छणेहि य सिरोवत्थीहि य तप्पणेहि य पुडपागेहि य छल्लीहि य मूलेहि य कंदेहि य पत्तेहि य पुप्फेहि य फलेहि य बीएहि य सिलियाहि य गुलियाहि य ओसहेहि य भेसजेहि य इच्छंति तेसिं सोलसण्हं, रोयातंकाणं एगमवि रोयायंकं उत्सामित्तए णो चेव णं संचाएंति उवसामित्तओ, तते णं ते बहवे वेज्जा य वेजपुत्ता २० जाहे नो संचाएंति तेसिं सोलसण्हं रोयातंकाणं एगमवि रोयायंकं उवसाभित्तए ताहे संता तंता परितंता जामेव दिसं पाउब्भूता तामेव दिसं पडिगता, तते णं एक्काई विजेहि य० पडियाइक्खिए परियारगपरिचत्ते निविण्णोसहभेसजे सोलसरोगातंकेहिं अभिभूते समाणे रज्जे य य जाव अंतेउरे य मुच्छिते रज्जं चरखंच आसाएमाणे पत्थेमाणे पीहेमाणे अहिलसमाणे अट्टदुहवसट्टे अड्ढाइजाई वाससयाई परमाउं पालयित्ता कालसामे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमद्वितीएसु नरइएसु णेरइयत्ताए उववण्णे, से णं ततो अंणतरं उव्वट्टित्ता इहेव भियग्गामे नगरे विजयस्स खत्तियस्स मियाए देवीए कुच्छिसि || श्री विपाक्दशाङ्गम् ॥ । ८ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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