Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly
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णं तत्थ बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता आलोइयपडिक्कं समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे देवत्ताए | उववज्जिहिति से णं ततो अनंतरं चयं चइत्ता महाविदेहे वासे जाई इमाई कुलाई भवंति अड्ढाइं० जहा दढपतिष्णे सा चेव वत्तव्वया कलाओ जाव सिज्झिहिति, सेवं भंते! २ त्ति भगवं गोयमे०, एवं खलु जम्बू ! समणेणं भगवता महावीरेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयम पण्णत्तेत्तिबेमि ॥६॥ इति मृगापुत्रीयाध्यनं १ ॥
जति णं भंते! समणेणं जाव संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अझयणस्स अयमट्ठे पं० दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स दुहविवागाणं समणेणं जाव० संपत्तेणं के अट्ठे पं०?, तते गं से सुहम्मे अणगारे जंबूं अणगारं एवं व०- एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं० वाणियग्गामे णामं नगरे होत्था द्धि०, तस्स णं वाणियग्गामस्स उत्तरपुरिच्छमे दिसी भाए दूतिपलासे नामं उज्जाणे होत्था, तत्थ णं दूइपलासे० सुहम्मस्स जक्खस्स जक्खायनणे होत्या, तत्थ णं वाणियग्गामे मित्ते नामं राया होत्या वण्णओ, तत्थ णं मित्तस्स रण्णो सिरी नामं देवी होत्था वण्णओ, तत्थणं वाणियग्गामे कामज्झया णामं गणिया होत्या अहीण० जाव सुरूवा बावत्तरीकलापंडिया चउसट्ठिगणियागुणोववेया एकूणतीसविसेसे रममाणी एक्कवीसरतिगुणप्पहाणा बत्तीसपुरिसोवयार कुसला णवंगसुत्तपडिबोहिया अट्ठारसदेसी भासाविसारया सिंगारागार चारुवेसा गीयर तियगंधव्वनट्टकुसला संगतगत सुंदरत्थण० ऊसियधया सहस्सलंभा विदिण्णछत्तचामरबालवीयणिया कण्णीरहम्पयाया यावि होत्या बहूणं गणियासहस्साणं आहेवच्चं जाव विहरति (७)
॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोषित
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