Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly
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य अच्छीहि य नासाहि य जिम्माहि य ओट्ठेहि य कंबलेहि य सोल्लेहि य तलितेहि य भज्जितेहि य परिसुक्केहि य लावणिएहि यसुरं च मधुं च मेरगं च जातिं च सीधुं च पसण्णं च आसाएमाणीओ विसाएमाणीओ परिभाएमाणीओ परिभुंजेमाणीओ दोहलं विर्णेति, तं जइ णं अहमवि बहूणं नगर जाव विणेज्जामित्तिकट्टु तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि सुक्खा भुक्खा निम्मंसा उलुग्गा उलुग्गसरीरा नित्तेया दीणविमणवयणा पंडुल्लियमुही ओमंथियनयणवयणकमला जहोइयं पुष्फवत्थगंधमल्लालंकारहारं अपरिभुंजमाणी करयलमलियव्व कमलमाला ओहय जाव झियाति इमं च णं भीमे कूडग्गाहे जेणेव उप्पला कूडग्गाहिणी तेणेव उवा० त्ता ओहय० जाव पासति त्ता एवं व०-किण्णं तुमं देवाणुम्पिया ओहय जाव झियासि ?, तते णं सा उप्पला भारिया भीमं कूड० एवं व०एवं खलु देवाणुप्पिया! ममं तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं दोहले पाउब्भूते धण्णा गं० जाओ णं बहूणं गो० ऊहेहि य० लावणिएहि य० सुरं च० आसा० दोहलं विणिंति तते णं अहं देवाणु० तंसि दोहलंसि अविणिज्जमाणंसि जाव झियामि, तते णं से भीमे कूड० उप्पलं भारियं एवं व० मा णं तुमं देवाणु० ओहय जाव झियाहि अहं णं तहा करिहामि जहा णं तव दोहलस्स संपत्ती भविस्सइ ताहिं इट्ठाहिं जाव समासासेति, तते गं से भीमे कूड० अड्ढरत्तकालसमयंसि एगे अबीए सण्णद्ध जाव पहरेण सयाओ गिहाओ निग्गच्छति ना हत्थिणारं मज्झंमज्झेणं० जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागते ता बहूणं णगरगोरूवाणं जाव वसभाण य अगइयाणं ऊहे छिंदति जाव अप्पेगइयाणं कंबलए छिंदति अप्पेगइयाणं अण्णमण्णाई अंगोवंगाई वियंगेति ता जेणेव सए गिहे
॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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