Book Title: Agam 11 Ang 11 Vipak Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakaly

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कालमासे कालं किच्चा इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले सीहकुलंसि सीहत्ताए पच्चायाहिति, से णं तत्थ सीहे भविस्सति अहम्मिए जाव साहसिते सुबहं पावकम्मं जाव समजिणति त्ता कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणष्पभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमट्ठिईएसु जाव उववज्जिहिति से णं ततो अनंतरं उव्वट्टित्ता सरीसवेसु उववाजिहिति तत्थ णं कालं किच्चा दोच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं तिन्निसागरोवमठिई० से णं ततो अनंतरं उव्वट्टित्ता पक्खीसु उववज्जिहिति तत्थवि कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए सत्तसागरो० ततो सीहेसु त्यानंतरं चउत्थीए उरगो पंचमीए० इत्थी● छट्टीए० मणुओ० अहे सत्तमाए तत्तो अनंतरं उव्वट्टित्ता से जाई इमाई जलयर पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मच्छकच्छ भगाहमगर सुंसुमारादीणं अद्धतेरसजातिकुलकोडी जोणिपमुहसतसहस्साई तत्थ णं एगमेगंसि जोणीविहाणंसि अणेगसयसहस्सक्खुत्तो उद्दाइत्ता २ तत्थेव भुज्जो २ पच्चायाइस्सति से णं ततो उव्वट्टित्ता एवं चउप्पएस उरपरिसप्पेसु भुयपरिसप्पेसु खहयरेसु चउरिदिएसु तेइंदिएसु बेइंदिएसु वणम्फतिकडुयरुक्खेसु कडुयदुद्धिएसु वाउ० तेउ० आउ० पुढवी० अणेगसत्सहस्सक्खुत्तो० से णं ततो अनंतरं उव्वट्टित्ता सुपतिट्ठपुरे नगरे गोणत्ताए पच्चायाहिति से णं तत्थ उम्मुक्कबालभावे अण्णया कयाती पढमपाउसंसि गंगाए महाणदीए खलीणमट्टियं खणमाणे तडीए पेल्लिते समाणे कालगते तत्थेव सुपइट्ठपुरे नगरे सिट्ठिकुलंसि पुमत्ताए पच्चायाइस्संति से णं तत्थ उम्मुक्क० जाव जोव्वणमणुष्पत्ते तहारूवाणं थेराणं अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वैइस्सति, से णं तत्थ अणगारे भविस्सति ईरियासमिते जाव बंभयारी, से ॥ श्री विपाकदशाङ्गम् ॥ ११ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal

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