Book Title: Agam 08 Ang 08 Anantkrut Dashang Sutra Stahanakvasi Author(s): Madhukarmuni, Divyaprabhashreeji, Devendramuni, Ratanmuni, Kanhaiyalal Maharaj Publisher: Agam Prakashan SamitiPage 14
________________ उक्त सभी कार्यों का विहंगम-अवलोकन करने के बाद मेरे मन में एक संकल्प उठा। आज कहीं तो आगमों का मूल मात्र प्रकाशित हो रहा है और कहीं आगमों की विशाल व्याख्याएँ की जा रही हैं। एक, पाठक के लिए दुर्बोध है तो दूसरी जटिल। मध्यम मार्ग का अनुसरण कर आगमवाणी का भावोद्घाटन करने वाला ऐसा प्रयत्न होना चाहिए जो सुबोध भी हो, सरल भी हो, संक्षिप्त हो, पर सारपूर्ण हो। गुरुदेव ऐसा ही चाहते थे। उसी भावना को लक्ष्य में रखकर मैंने ४-५ वर्ष पूर्व इस विषय में चिन्तन प्रारम्भ किया। सुदीर्घ चिन्तन के पश्चात् वि.सं. २०३६ वैशाख शुक्ल १० महावीर कैवल्यदिवस को दृढ़ निर्णय करके आगमबत्तीसी का सम्पादन विवेचन कार्य प्रारम्भ कर दिया और अब पाठकों के हाथों में आगम ग्रन्थ क्रमश: हैं, इसकी मुझे अत्यन्त प्रसन्नता है। आगम सम्पादन का यह ऐतिहासिक कार्य पूज्य गुरुदेव की पुण्य-स्मृति में आयोजित किया गया है। आज उनका पुण्यस्मरण मेरे मन को उल्लसित कर रहा है। साथ ही मेरे वन्दनीय गुरुभ्राता पूज्य स्वामी श्री हजारीमल जी महाराज की प्रेरणाएँ, उनकी आगमभक्ति तथा आगम सम्बन्धी तलस्पर्शी ज्ञान, प्राचीन धारणाएँ मेरा सम्बल बनी हैं। अतः मैं उन दोनों स्वर्गीय आत्माओं की पुण्यस्मृति में विभोर हूं। शासनसेवी स्वामीजी श्री ब्रजलालजी महाराज का मार्गदर्शन, उत्साहसंवर्द्धन, सेवाभावी शिष्यमुनि विनयकुमार व महेन्द्र मुनि का साहचर्य-बल, सेवासहयोग तथा महासती श्री कानकुंवरजी, महासती श्री झंकारकुंवरजी, परमविदुषी साध्वी श्री उमरावकुंवर जी 'अर्चना' की विनम्र प्रेरणाएँ मुझे सदा प्रोत्साहित तथा कार्यनिष्ठ बनाये रखने में सहायक रही हैं। मुझे दृढ़ विश्वास है कि आगमवाणी के सम्पादन का यह सुदीर्घ प्रयत्नसाध्य कार्य सम्पन्न करने में मुझे सभी सहयोगियों, श्रावकों व विद्वानों का पूर्ण सहकार मिलता रहेगा और मैं अपने लक्ष्य तक पहुँचने में गतिशील बना रहूंगा। इसी आशा के साथ...... -मुनि मिश्रीमल 'मधुकर' (प्रथम संस्करण से) [११]Page Navigation
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