Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 375
________________ 855555555555555555555555555 आदि सभी गतियों में वर्तमान जीवों द्वारा प्रति समय बहुत-से ग्रहण किए जाते हैं। उससे तैजस पुद्गल ॐ परिवर्तन का निष्पत्तिकाल अनन्तगुणा है, क्योंकि तैजस पुद्गल स्थूल होने के कारण और अल्प-प्रदेशों के से निष्पन्न होने से वे जीव द्वारा एक बार में अल्प रूप से ग्रहण किए जाते हैं। इसलिए कार्मण से म तैजस पुद्गल-परिवर्तन का निष्पत्तिकाल अनन्तगुणा है। उससे औदारिक पुद्गल-परिवर्तन का निष्पत्तिकाल के ॐ अनन्तगुणा है, क्योंकि औदारिक पुद्गल अत्यन्त स्थूल होते हैं तथा वे कार्मण और तैजस पुद्गलों की तरह सर्व-संसारी जीवों द्वारा निरन्तर गृहीत नहीं होते, केवल औदारिक शरीरधारियों द्वारा ही ग्रहण किये +जाते हैं इसलिए बहुत लम्बे काल में उनका ग्रहण होता है। उससे आन-प्राण-पुद्गल-परिवर्तन का + निष्पतिकाल अनन्तगुणा है। यद्यपि औदारिक पुद्गलों से आन-प्राण-पुद्गल सूक्ष्म और बहुप्रदेशी होते है 卐 हैं, फिर भी उनका ग्रहण अल्पकाल में होता है, क्योंकि अपर्याप्त-अवस्था में उनका ग्रहण न होने से 5 तथा पर्याप्त-अवस्था में भी औदारिक शरीर-पुद्गलों की अपेक्षा अल्प-परिमाण में उनका ग्रहण होने से, 卐 उनका शीघ्रतापूर्वक ग्रहण नहीं होता। इसलिए औदारिक पुद्गल-परिवर्तन का निष्पत्तिकाल अनन्तगुणा है। यद्यपि आन प्राण पुद्गलों की अपेक्षा मनःपुद्गल सूक्ष्म और बहुप्रदेशी होते हैं, फिर भी अल्पकाल ऊ में ही उनका ग्रहण होता है, क्योंकि एकेन्द्रियादि की कायस्थिति बहुत दीर्घकालीन है। एकेन्द्रियादि में + चले जाने पर मन की प्राप्ति चिरकाल के बाद होती है, इसलिए मन:पुद्गल-परिवर्तन दीर्घकाल-साध्य ॐ होने से मनःपुद्गल-परिवर्तन का निष्पत्तिकाल उससे अनन्तगुणा कही गयी है। उससे वचन पुद्गल के म परिवर्तन निष्पत्तिकाल अनन्तगुणा है क्योंकि मनोद्रव्यों की अपेक्षा भाषाद्रव्य अत्यन्त स्थूल होते हैं, ॐ इसलिए एक बार में उनको अल्प परिमाण में ग्रहण किया जाता है। अतः मन:पुद्गल-परिवर्तन-भ + निष्पत्तिकाल से वाक्-पुद्गल-परिवर्तन-निष्पत्तिकाल अनन्तगुणा है। इससे वैक्रिय पुद्गल-परिवर्तन है F का निष्पत्तिकाल अनन्तगुणा है, क्योंकि वैक्रिय शरीर बहुत दीर्घकाल में प्राप्त होता है। Elaboration—The period of completion of Karmic particulate 5 transformation is minimum, because these particles are very minute and thus they are acquired by a soul in bunches every moment. Infinite times 5 more than that is the period of completion of Fiery particulate transformation 5 because these particles grosser and are acquired in lesser numbers every moment by a soul. Infinite times more than that is the period of completion 4 of gross physical particulate transformation because these particles are even larger than fiery particles, moreover they are acquired only by souls with 5 gross physical body and not by any other soul; thus it takes much more time to exhaust all available particles. Infinite times more than that is the period of completion of Breath particulate transformation; this is because, though 4 these particles are smaller than gross physical particles, they are acquired only by souls with fully developed bodies and even the fully developed bodies 41 acquire more gross physical particles than breath particles. Infinite times म))))))))))))555555555555555555555555)))))))))))))) 65555))))))))))))))))5555555555555555555555555555 | बारहवॉशतक : चतुर्थ उद्देशक (321) Twelfth Shatak: Fourth Lesson

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