Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan
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३०- १. [ प्र. ] आया भंते! चउप्पएसिए खंधे, अन्ने, पुच्छा ?
[उ.] गोयमा ! चउप्पएसिए खंधे सिय आया १, सिय नो आया २, अवत्तव्वं-आया इ य नो आया इ य ३, सिय आया य नो आया य ४-७, सिय आया य अवत्तव्वं ८-११, सिय नो आया य अवत्तव्वं १२-१५, सिय आया य नो आया य अवत्तव्वं - आया इ य नो आया इ य १६, सिय आया य नो आया य अवत्तव्वाइं - आयाओ य नो आयाओ य १७, सिय आया य नो आयाओ य अवत्तव्वं - आया इ य नो आया इय १८, सिय आयाओ य नो आया य अवत्तव्वं - आया इ य नो आया इ य १९ ।
सिय
३०-१ [प्र.] भगवन्! चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मारूप (सद्रूप) है, अथवा उससे अन्य (असद्रूप) है?
[उ.] गौतम ! चतुष्प्रदेशी स्कन्ध - (१) कथंचित् आत्मा है, (२) कथंचित् नो आत्मा है,
(३) आत्मा-नो- आत्मा उभयरूप होने से - अवक्तव्य है, (४-७) कथंचित् आत्मा और नो आत्मा है (एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा से चार भंग ); ( ८-११) कथंचित् आत्मा और अवक्तव्य
है (एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा से चार भंग); (१२-१५) कथंचित् नो आत्मा और अवक्तव्य है; (एकवचन और बहुवचन की अपेक्षा से चार भंग); (१६) कथंचित् आत्मा और नो
आत्मा तथा आत्मा-नो आत्मा इस प्रकार उभयरूप से अवक्तव्य है । (१७) कथंचित् आत्मा और
नो आत्मा तथा आत्माएँ और नो- आत्माएँ इस प्रकार उभय होने से अवक्तव्य है । (१८) कथंचित्
आत्मा और नो आत्माएँ तथा आत्मा-नो आत्मा इस प्रकार उभयरूप होने से - ( कथंचित्) अवक्तव्य है और (१९) कथंचित् आत्माएँ, नो आत्मा तथा आत्मा नो आत्मा इस प्रकार उभयरूप होने से (कथंचित्) अवक्तव्य हैं।
30-1. [Q.] Bhante ! Is a tetra-sectional aggregate (chatushpradeshi skandh) self-morphic (atma-roop or existent) or non-self-morphic (anya or non-existent) ?
[Ans.] Gautam ! (1) a tetra-sectional aggregate (chatushpradeshi skandh) is perhaps self-morphic (atma-roop or existent), (2) perhaps nonself-morphic (anya or non-existent), (3) perhaps inexpressible - being both (atma and no-atma); (4-7) perhaps existent and perhaps non-existent (four alternatives with reference to singular and plural); (8-11) perhaps existent and perhaps inexpressible-being both (atma and no-atma) (four alternatives with reference to singular and plural); ( 12-15 ) perhaps non-existent and perhaps inexpressible - being both (atma and no-atma) (four alternatives
भगवती सूत्र (४)
Bhagavati Sutra ( 4 )
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