Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 504
________________ 8 5 95 95 95 95 9595555555 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 959595950 8 5 5 5 5 5 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 9595595595 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 958 त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा रूप है तथा बहुत देशों के आदेश और असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, वह त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो आत्माएँ हैं । ६. बहुत देशों के आदेश और सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कंध आत्माएँ है तथा एक देश के आदेश से और असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो आत्मा है । ७. एक देश के आदेश से और सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कंध आत्मा है और एक देश के आदेश और उभय- (सद्भाव और असद्भाव) पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा तथा नो आत्मा - उभयरूप होने से अवक्तव्य है। ८. त्रिप्रदेशी स्कंध एक देश के आदेश से और सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से आत्मा तथा बहुत देशों के आदेश से और उभय पर्याय की विवक्षा से आत्माएँ तथा नो आत्माएँ, इस प्रकार उभयरूप होने से अवक्तव्य है। ९. त्रिप्रदेशी स्कंध बहुत देशों के आदेश से और सद्भाव - पर्याय की अपेक्षा से आत्माएँ तथा एक देश के आदेश से और उभय पर्याय की अपेक्षा से आत्मा तथा नो आत्मा इस प्रकार उभयरूप से अवक्तव्य है। ये तीन भंग जानने चाहिए । १०. एक देश के आदेश से और असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से तथा एक देश के आदेश से एवं उभय पर्याय की अपेक्षा से, त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो आत्मा और आत्मा-नो आत्मा इस प्रकार उभयरूप से अवक्तव्य है । ११. एक देश के आदेश से और असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से तथा बहुत देशों के आदेश से और तदुभय-पर्याय की अपेक्षा से त्रिप्रदेशी स्कन्ध, नो आत्मा और आत्माएँ तथा नो आत्माएँ इस प्रकार उभयरूप से अवक्तव्य है । १२. बहुत देशों के आदेश से और असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से तथा एक देश के आदेश से और तदुभय पर्याय की अपेक्षा से, त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो- आत्माएँ और आत्मा तथा नो-आत्मा इस प्रकार उभयरूप से अवक्तव्य है । १३. एक देश के आदेश से और सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, एक देश के आदेश से और असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से तथा एक देश के आदेश से तदुभय पर्याय की अपेक्षा से, त्रिप्रदेशी स्कन्ध कथंचित् आत्मा, नो आत्मा और आत्मा-नो आत्मा इस प्रकार उभयरूप से अवक्तव्य है । इसलिए हे गौतम! त्रिप्रदेशी स्कन्ध को कथंचित् आत्मा, यावत्-आत्मा-नो आत्मा उभयरूप से अवक्तव्य कहा गया है। 29-2. [Q.] What is the reason for this (a tri-sectional aggregate is perhaps existent )... and so on up to ... perhaps existent, perhaps non-existent and perhaps inexpressible? [Ans.] Gautam! A tri-sectional aggregate (tripradeshi skandh) (1) is existent in context of its own form (as tri-sectional aggregate); (2) is nonexistent in context of other form; (3) is inexpressible in context of both forms; (4) is existent with reference to one of its sections in existent mode and is non-existent with reference to one of its sections in non-existent mode; (5) is existent with reference to one of its sections in existent mode भगवती सूत्र (४) (440) Bhagavati Sutra ( 4 ) 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 9555555555555558 卐 555555555555 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 95 9 5 5 5 5 5 5 5 5 5

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