Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 503
________________ 85555))))))))))))))))))))))))))))))))) being both (atma and no-atma), and (13) perhaps existent, perhaps non5 existent and perhaps inexpressible-being both (atma and no-atma). २९-२. [प्र.] से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'तिपएसिए खंधे सिय आया य. एवं म चेव उच्चारेयव्वं जाव सिय आया य नो आया य अवत्तव्वं-आया-इ य नो आया इ य? [उ.] गोयमा! अप्पणो आइढे आया १; परस्स आइडे नो आया २; तदुभयस्स है आइढे अवत्तव्वं आया इ य नो आया इ य ३; देसे आइटे सब्भावपज्जवे, देसे आइटे ॐ असब्भावपज्जवे तिपएसिए खंधे आया य नो आयाओ य ४; देसे आइढे सब्भावपज्जवे, म देसा आइट्ठा असब्भावपज्जवा तिपएसिए खंधे आया य नो आयाओ य ५; देसा आइट्ठा ॐ सब्भावपज्जवा, देसे आइटे असब्भावपज्जवे तिपएसिए खंधे आयाओ य नो आया य ६; म है देसे आइटे सब्भावपज्जवे, देसे आइटे तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे आया य. म अवत्तव्वं-आया इ य नो आया इ य ७; देसे आइटे सब्भावपज्जवे, देसे आइट्ठा ॐ तदुभयपज्जवा तिपएसिए खंधे आया य अवत्तव्वाइं-आयाओ य नो आयाओ य ८; देसाई + आइडे सब्भावपज्जवा, देसे आइटे तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे आयाओ य. अवत्तव्वं-आया इ य नो आया इ य ९; एए तिणि भंगा। देसे आइटे असब्भावपज्जवे, ॐ देसे आइटे तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे नो आया य अवत्तव्वं-आया इ य नो आया इम भय १०; देसे आइढे असब्भावपज्जवे, देसा आइट्ठा तदुभयपज्जवा तिपएसिए खंधे नो , + आया अवत्तव्वाइं-आयाओ य नो आयाओ य ११; देसा आइट्ठा असब्भावपज्जवा, देसे आइटे तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे नो आयाओ य अवत्तव्वं-आया इ य नो आया इ य म १२; देसे आइढे सब्भावपज्जवे, देसे आइढे असब्भावपज्जवे, देसे आइढे तदुभयपज्जवे तिपएसिए खंधे आया य नो आया य अवत्तव्वं-आया इ य नो आया इ य १३; से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ-तिपएसिए खंधे सिय आया. तं चेव जाव नो आया इ य। २९-२ [प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप इस प्रकार कहते हैं कि त्रिप्रदेशी स्कन्ध म कथंचित् आत्मा है, इत्यादि इस तरह सब पूर्ववत् उच्चारण करना चाहिए। यावत्-कथंचित् आत्मा है, नो आत्मा है और आत्मा-नो आत्म उभय रूप होने से अवक्तव्य है? [उ.] गौतम! त्रिप्रदेशी स्कन्ध १. अपने आदेश (अपेक्षा) से आत्मा (सद्प ) है; २. पर है के आदेश से नो आत्मा (असद्प ) है, ३. उभय के आदेश से आत्मा और नो आत्मा इस प्रकार म उभयरूप होने से अवक्तव्य है। ४. एक देश के आदेश से और सद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से वह त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मरूप है तथा एक देश के आदेश और असद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से वह म त्रिप्रदेशी स्कन्ध नो-आत्मारूप है। ५. एक देश के आदेश और सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से वह 855555555555555555555555 बारहवाँशतकः दशम उद्देशक (439) Twelfth Shatak : Tenth Lesson

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