Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni
Publisher: Padma Prakashan

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Page 538
________________ 84555555555555555555555555 5 555555 [उ.] एवं जहा पंकप्पभाए। नवरं तिसु नाणेसु न उववज्जति न उव्वदृति। पन्नत्तएसु तहेव अत्थि। एवं असंखेज्जवित्थडेसु वि। नवरं असंखेज्जा भाणियव्वा। १८ [प्र.] भगवन् ! अधःसप्तम पृथ्वी के पाँच अनुत्तर और बहुत बड़े यावत् महानरकावासों के में में से संख्यात योजन विस्तार वाले अप्रतिष्ठान नरकावास में एक समय में कितने नैरयिक जीव उत्पन्न होते हैं? इत्यादि प्रश्न। ___ [उ.] गौतम! जिस प्रकार पंकप्रभा के विषय में कहा गया है, (उसी प्रकार अधःसप्तम है पृथ्वी के विषय में भी कहना चाहिए।) केवल विशेषता इतनी है कि यहाँ तीन ज्ञान वाले न तो उत्पन्न होते हैं, न ही उवर्तन करते हैं। परन्तु इन पाँचों नरकावासों में रत्नप्रभा पृथ्वी आदि के समान तीनों ज्ञान वाले पाये जाते हैं। जिस प्रकार संख्यात योजन विस्तार वाले नरकावासों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार असंख्यात योजन विस्तार वाले नरकावासों के विषय में भी कहना चाहिए। केवल विशेषता इतनी है कि यहाँ 'संख्यात' के स्थान पर 'असंख्यात' कहना चाहिए। 18. [Q.] Bhante !Out of the five unique and gigantic infernal abodes, 卐 in Adhah-saptam Prithvi (seventh hell), in those having countable Yojan area, in one Samay (indivisible fractional unit of time) how many infernal 4 beings (jivas) are born ? And other questions. [Ans.] Gautam! What has been said about Pankaprabha Prithvi should be repeated here (for Adhah-saptam Prithvi). The only difference is that here jivas with three kinds of knowledge are neither born nor die but, like Ratnaprabha and other Prithvis, jivas with three kinds of knowledge are found in these five infernal abodes also. What has been said about infernal abodes with countable Yojan area should also be repeated $ for those with innumerable Yojan area, mentioning innumerable instead of countable. विवेचन-चूँकि असंज्ञी जीव प्रथम नरक पृथ्वी के अलावा उससे आगे की पृथ्वियों में उत्पन्न ॐ नहीं होते हैं। इसलिए द्वितीय नरक पृथ्वी से लेकर सप्तम नरक पृथ्वी तक में उनकी उत्पत्ति, उद्वर्तना म और सत्ता, ये तीनों बातें नहीं कही गयी हैं। लेश्याओं के विषय में जो विभिन्नता कही गई है, वह प्रथम शतक पंचम उद्देशक के (श. १, उ. भी ५) के अनुसार जाननी चाहिए। उसके अनुसार काऊ दोसु तइयाइ मीसिया नीलिया चउत्थीए। पंचमियाए मीसा कण्हा, तत्तो परमकण्हा॥ | भगवती सूत्र (४) (472) Bhagavati Sutra (4) 855555555555555555555555555555555555558

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