Book Title: Adhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 136
________________ 66 अध्यात्म० ज्ञानप्रसङ्गादुक्तं च नद्यः पक्षस्तावन्मात्रेण रसनेन्द्रियज्ञानासंभवादन्यथाऽमरनिकरनिरन्तरनिर्मुक्तकुसुमपरिॐ मलादिसंवन्धात् घ्राणेन्द्रियज्ञानमपि भवेदिति" स्यादेतत्, कवलाहारो हि न स्वरूपतः सुखं दुःखं वा जनयति, ॥ ६२ ॥ अपि तु रसनेन्द्रियजन्यमधुरतिक्तादिरसोद्बोधद्वाराऽत एव पित्तद्रव्येण तिक्तरसोद्बोधाच्छर्कराभक्षणादपि दुःखोद्भव इति भगवतां तज्जन्यसुखस्वीकारे तज्जनकमधुरादिरसरासनप्रसङ्ग इति चेन्न, भगवतां कवलाहार - ॐ रसास्वादजन्यसुखदुःखानुत्पत्तावपि ततः क्षुदादिदुःखनिवृत्तेस्तज्जन्यसुखोत्पत्तेर्वा संभवात्तित्ताद्यौषधादेवि धातुॐ साम्यद्वारैव तस्य तद्धेतुत्वाद्, अत एव रसास्वादं वर्जयित्वैव भुञ्जतामप्रमत्तयतीनां न तत्फलानुपपत्तिः, ननु ॐ तथापि रसनेन्द्रियेणाहाररसग्रहणे ततस्तद्व्यञ्जनावग्रहप्रसङ्गो, द्रव्येन्द्रियतदुभयसंसर्गरूपव्यञ्जनपूरणात्तदुत्पत्तेः, तदापूरणं चासंख्येयैः समयैः प्रतिबोधकमलकोदाहरणाभ्यां नन्द्यध्ययनादवसेयं तथाहि -" वंजणोग्गहस्स परूवणं करि - स्सामि पडिबोहगदितेणं, से जहाणामए केई पुरिसे कंचि पुरिसं सुत्तं पडिबोहिज्जा अमुगअमुगत्ति, तत्थ चोअए पनवगं एवं वयासी, किं एगसमयपविद्वा पोग्गला गहणमागच्छन्ति, जाव णो संखेज्जसमयपविद्या पोग्गला गहणमाग च्छंति, असंखेज्जसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छंति । सेत्तं पडिबोहगदितेणं, से किं तं मल्लगदितेणं, ! मलगादितेणं से जहाणामए केई पुरिसे आवागसीसाउ मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिंदु पक्खिवेज्जा से नट्ठे, अन्ने वि पक्खित्ते ॐ से वि नट्टे एवं पक्खिप्पमाणेसु २ होही से उदगबिंदू जेणं तं मल्लगं राविहिति होही से उदगबिंदू जेण तंसि मल्लगं सि ठाहिति, होही से उदगबिंदू जेण तं मल्लगं भरेहिइ, होही से उदगबिंदू जेण तंसि मल्लगंसि न ठाहिति, होही से उदगबिंदू जेण ७ Jain Education 30004 For Private & Personal Use Only परीक्षा वृ० ॥ ६२ ॥ w.jainelibrary.org

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