Book Title: Adhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Author(s): Yashovijay Upadhyay,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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अध्यात्म० ॥ १०७ ॥
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| पडिसिद्धसेवणं पुण णो अववाओ फुडो अणायारो । ता वत्थाई गन्थो णो उस्सग्गो ण अववाओ ॥ १२ ॥ उवकुणइ जह सरीरं सुद्धवओगं तहेव उवगरणं । जम्हा तओ मुणीणं सुए अणेगे गुणा भणिआ ॥ १३ ॥ जह उबहिभारगहणं इटुं दुज्झाणवजणणिमित्तं । तो सेयं श्रीगहणं मेहुणसण्णाणिरोहट्ठा ॥ १४ ॥
एयं विदूसगाणं वयणं मयणंधवयणमित्र मोहा । अण्णह समोवहासो देहाहाराइगहणेवि ॥ १५ ॥
| रागस्स व दोसस्स व उद्दिस्स सुहासुहे सुहासुहया । जइ पुण विसयावेक्खा कह होज्जा तो विभागो सिं ॥ १६ ॥ ॐ नामं ठवणा दविए रागो दोसो अ भावओ चउहा । कम्मं जोग्गं बद्धं वज्झन्तमुदीरणोवगयं ॥ १७ ॥ णोकम्मदव्यराओ णायव्वो वीससा पओगा य । सम्झाइकुसुंभाई दोसो दुट्टव्वणाईओ ॥ १८ ॥
जं रागदोसकम्मं समुइण्णं जे तओ अ परिणामा । ते भावरागदोसा वुच्छमिहं णयसमोआरं ॥ १९ ॥ कोहो माणो दोसो माया लोभो अ रागपज्जाया । सङ्ग्रहणयमयमेयं दोसो मायावि विवहारा ॥ २० ॥ उज्जुसुअस्स य कोहो दोसो सेसेसु णत्थि एगन्तो । कोहो च्चिय लोहो चिय माणो माया य सद्दस्स ॥ २१ ॥ 6 परदवम्मि पवित्ती ण मोहजणिया व मोहजण्णा वा । जोगकया हु पवित्ती फलकंखा रागदोसकया ॥ २२ ॥ वत्थाइ णेव गन्धो मुणीण मुच्छं विशेव गहणाओ । तह देहपालणट्ठा जह आहारो तुहवि इट्ठो ॥ २३ ॥ जह देहपालणट्टा जुत्ताहारो विराहगो ण मुणी । तह जुत्तवत्थपत्तो विराहगो व विदिट्ठो ॥ २४ ॥
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परीक्षा मू०
ॐ ॥ १०७ ॥
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