Book Title: Adhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 229
________________ 900000000000000000000000 भत्ताइपोग्गलाण वि ण दाणहरणाइ होइ जीवस्स । जइ तं सञ्चिय हुजा तो दिजा वा अवहरिजा ॥५१॥ जोगवसेणुवणीया इट्टाणिठ्ठा य पोग्गला जे हु। अण्णा ते जीवाओ जीवो अण्णो अ तेहिन्तो ॥५२॥ का तम्हा सपरविभागो पोग्गलदईमि पत्थि णिच्छयओ। भोगाभोगविसेसा ववहारा चेव सपरत्तं ॥ ५३॥ पुण्णपयडीण उदए भोगो भोगंतरायविलएणं । जइ णियवित्तेणं चिय तो भोगो किण्ण किविणाणं ॥ ५४॥ जो परदवंमि पुणो करेइ मूढो ममत्तसंकप्पं । सो कह आयसहावं गिद्धो विसएसु उवलहइ ॥ ५५ ॥ णाहं होमि परेसिंण मे परे णत्थि मज्झमिह किंची। इय आयभावणाए रागद्दोसा विलिजन्ति ॥ ५६ ॥ तो परिणामाउ चिय बन्धो मोक्खो व णिच्छयणयस्स । णगंतिया अणचंतिया पुणो बाहिरा जोगा ॥ ५७ ॥ |सिद्धी णिच्छयओ चिय, दोण्हं संजोगओ अछेयत्तं । कत्थइ कत्थइ दोण्हवि, उवओगो तुल्लवं चेव ॥५८॥ तुलत्तमवेक्खाए णियमा समुदायजोगमहिगिच । किरिया विसिस्सए पुण नाणाउ सुए जओ भणियं ॥ ५९॥ जम्हा सणनाणा संपुन्नफलं न दिति पत्तेयं । चारित्तजुआ दिति हि विसिस्सए तेण चारित्तं ॥ ६॥ एवं ववहाराउ बलवन्तो णिच्छओ मुणेयवो। एगमयं ववहारो सबमयं णिच्छओ वत्ति ॥ ६१॥ अहिया जइ तुह किरिया अहियं नाणंपि तस्स हेउत्ति । कारणगुणाणुरूवा कजगुणा व विवरीया ॥ ६२॥ अह जइ सबणयमयं विणिच्छओ इगमयं च ववहारो। तो सो सयलादेसो विगलादेसो कहं होउ ॥ ६३॥ POGROOOOOOOOOOOOOOOO Jain Education For Private Personal Use Only

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