Book Title: Adhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Author(s): Yashovijay Upadhyay,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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अणसणसहावजोगा जह असणं अणसणन्ति जुत्तमिणं । जुत्तं तह वत्थाई सहावओऽतप्परिणयस्स ॥२५॥ एवं च सचेलाणं, कह सुत्तुत्तं भवे अचेलत्तं । इय पभणंतस्स तुहं, को णियघररक्खणोवाओ ॥ २६ ॥ जइ चेलभोगमेत्ता ण जियालक्कपरिसहो साहू । भुञ्जन्तो अजियखुहापरीसहो तो तुम पत्तो ॥ २७॥ जह जलमवगाहन्तो भण्णइ चेलरहिओ सचेलो वि । तह थोवजुण्णकुत्थियचेला वि अचेलया साहू ॥ २८ ॥ उवयारेण अचेला, सेसमुणी सबहा जिणिन्दा य । खंधाओ देवदूसं, चवइ तओ चेव आरम्भ ॥ २९ ॥ एएण जइ अचेला जिणिन्दजिणकप्पिआइआ सुमुणी । तो एसो चिय मग्गो णण्णो त्ति पराकयं वयणं ॥ ३०॥ जिणकयमेव य कम्मं, जइ कायचं तओ तुहं इहयं । उवएससिस्सदिक्खागुरुवयणाईहि किं कजं ॥ ३१॥ निरतिसयाणं कप्पो, थेराण हिओ ठिओ अ तत्थेव । पडिवजउ जिणकप्पं, पञ्चहिँ तुलणाहिँ जुत्तो जो ॥ ३२॥ वेजुवदिट्ट ओसहमिव जिणकहि हि तओ मग्गं । सेवंतो होइ सुही इहरा विवरीअफलभागी ॥३३॥ अणिगृहन्तो सत्तिं, भुञ्जन्तो वि जह णो चयइ मग्गं । अणिगृहन्तो सत्तिं, तह उवगरणं धरन्तो वि ॥ ३४ ॥ कारणिगं जह वत्थं, तह आहारो वि दंसिओ समए । एगं चिचा अबरं, गिण्हताणं णु को भावो ॥ ३५ ॥ अविजियहिरिकुच्छाणं जइ णूणं सजमे ण अहिगारो । ता कह अजिअदिगिच्छातण्हाणं तत्थ अहिगारो ॥ ३६ ॥ अह हिरिकुच्छाहि सया हिरिकुच्छसहावभावणा णो चे । तण्हाछुहाहि ता कह तयभावसहावसंबुद्धी ॥ ३७॥
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