Book Title: Adhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 230
________________ अध्यात्म० परीक्षामू० ॥१०९॥ 0000000000000 मुक्खामुक्खविभागो इच्छामेत्तेण णत्थि एगंतो। जइ अत्थि तो वि नाणे चरणं सारोत्ति तं मोक्खं ॥६॥ सवणयमयत्तं पुण सवेसिं संमओ जओ विसओ। णय णिच्छयस्स तेणं सयलादेसत्तमेगस्स ॥६५॥ जेणं सयलादेसो अभयवित्तीइ णिच्छयाधीणो। तेणेव सो पमाणं ण पमाणं होइ ववहारो॥६६॥ जमणुवयारोवि बलं कस्सइ गंतियं हवे तंपि । एगस्स मुक्खभावे णियमा अवरोवयारोत्ति ॥ ६७॥ णिच्छयणयस्स विसयं भावं चिय जे पमाणमाहंसु । तसिं विणेव हेउं कजुप्पत्तीइ का मेरा ॥६८॥ खाओवसमिगभावो सुद्धो हेऊ सुहस्स खइअस्स । तब्भावेण कया पुण किरिया तब्भाववुड्डिकरी ॥ ६९॥ धिइसद्धासुहविविइसविणत्ती तत्तधम्मजोणित्ति । तलद्धधम्मभावा वड्डइ भावंतरं तत्तो ॥७॥ एवं पवभावो कमेण गुणठाणसेढिमारुहिय । पक्खीणघाइकम्मो कयकिचो केवली होइ ॥ ७१॥ नणु जइ सो कयकिच्चो अट्ठारसदोसविरहिओ देवो । ता छुहतण्हाभावा जुजइ कम्हा कवलभोई ॥७२॥ तो सक्का वुत्तुं जे छुहतहाई जिणस्स किर दोसा । जइ तं दूसेज गुणं साहावियमप्पणो कंचि ॥७३॥ दूसइ अबाबाहं इय जइ तुह सम्मओ तयं दोसो। मणुअत्तणंपि दोसो ता सिद्धत्तस्स दूसणओ ॥ ७४ ॥ अह जइ जिणस्स खइअं सुक्खं दुक्खं विरुज्झए तेणं । तो सामण्णाभावे विसेससत्ता कहं जुत्ता ॥ ७५ ॥ तो वेअणिजकम्मं उदयप्पत्तं कहं हवे तस्स । ण य सो पदेसउदओ समयम्मि विवागभणणाउ ॥ ७६ ॥ 00000000000000000000000 ॥ १ Jain Education For Private & Personel Use Only ainelibrary.org

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