Book Title: Adhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Author(s): Yashovijay Upadhyay,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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अध्यात्म०
॥ ११० ॥
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अधुवाण सुहदुहाणं भोगो भोगेण कम्मबंधो अ । ण हु एसो एगंतो अपमत्तजईसु तयभावा ॥ ९० ॥ अन्नाणजं तु दुक्खं नाणावरणक्खएण खयमेइ । तत्तो सुहमकलंकि अकेवलनाणा पुच्भूयं ॥ ९१ ॥ णय सुक्खं दुक्खं वा देहगयं इंदिउम्भवं सवं । अन्नाणमोहकज्जे पमाणसिद्धे हु संकोए ॥ ९२ ॥ एतो चिय बहुदुक्खक्खएण तेसिं छुहाइवेअणियं । णिंबरसलवुध पए अप्पंति भणंति समयविऊ ॥ ९३ ॥ णय तं कवलाजोग्गं वेअणिअं अगणिमंदयाभावा । ण य दढरज्जुकप्पं वेअणिअं हंदि सुअसिद्धं ॥ ९४ ॥ णय केवलनाणाई हाइपडिबंधगं जिनिंदस्स । दाहस्सिव मंताई इय जुत्तं तंतजुत्तीए ॥ ९५ ॥ खिज्जइ बलं छुहाए ण य तं जुज्जइ अणंतविरियाणं । इय वुत्तंपि ण सुतं बलविरियाणं जओ भेओ ॥ ९६ ॥ बंधो परपरिणामा सो पुण नाणा न वीयमोहाणं । जोगकयावि हु किरिया तो तेसिं होइ णिब्बीया ॥ ९७ ॥ जोगं विणावि किरिया सहावओ जइ कहण्ण तह सोवि । तुलं किर वेचित्तं तह तुलमबुद्धिपुधत्तं ॥ ९८ ॥ एयं सहाववाणी कह जुत्ता जेण तेसि वयजोगो । हेऊ दधसुअस्सा पओअणं कम्मखवणा य ॥ ९९ ॥ ण य वयणपयत्तेणं खेअस्सोदीरणं जिनिंदिस्स । इहरा सुहस्स पावइ तयं ण वा अण्णपयडीणं ॥ १०० ॥ णय तं विरियविरहियं जायइ अपवत्तणव करणंति । केवलसहावपक्खे सुगयस्स मयं अणुण्णायं ॥ १०१ ॥ खेओ गोईरिजइ केवलिजोगेहि तो विणु पमायं । तुलुदयहे उपभवो दीसह पुण सोवि तत्तुल्लो ॥ १०२ ॥
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परीक्षा मू०
॥ ११० ॥
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