Book Title: Adhyatmamatpariksha Swopagnyavruttyupeta
Author(s): Yashovijay Upadhyay,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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नाणावरणाईणं कम्माणं अट्ट जे ठिआ दोसा । तेसु गएसु पणासं एए अट्टवि गुणा जाया ॥ १२९॥ विरियावगाहणाउ पत्ते णामगोत्तकम्मखए । चरणं चिय मोहखए इय अट्ट गुणत्ति विति परे ॥ १३०॥ नणु सिद्धते सिद्धो नोचारित्ती अ णोअचारित्ती । भणिओ तो तस्स गुणो चारित्तं जुजए कम्हा ॥ १३१॥ नणु इह देसणिसेहे णोसद्दो तेण तस्स देसस्स । अत्थु णिसेहो किरियारूवस्स ण सत्तिरूवस्स ॥ १३२॥ जइ किरियारूवं चिय चारित्तं व आयपरिणामो। तो किरियारूवं चिय सम्मत्तं णायपरिणामो ॥ १३३॥ जं पुण तं इहभवियं तं किरियारूवमेव अवं । अहवा भवो ण मोक्खो णो तम्मि भवे हि अहवा ॥ १३४ ॥ ण य मोक्खसुहे लद्धे तयणुढाणस्स हंदि वेफलं । तत्कारणस्स इहरा नाणस्स वि होइ बेफलं ॥ १३५ ॥
व पइण्णाभंगो अहिआवहिपूरणंमि चरणस्स । सा वा किरियारूवे सुअकरणे जं करेमित्ति ॥ १३६॥ | अह चरणमणुटाणं तं ण सरीरं विणुत्ति जइ बुद्धी । तेण विणा नाणाई ता तस्स अहेउ पत्तं ॥ १३७॥
(अपि च) किरिया खलु ओदइगी खइअं चरणं ति दोण्हमह भेओ।
सा तेण बज्झचरणं अभंतरयं तु परिणामो ॥ १३८ ॥ आया खलु सामइए आया सामाइअस्स अट्ठोत्ति । तेणेव इमं सुत्तं भासइ तं आयपरिणामं ॥ १३९॥ णय खइ पि चरित्तं जोगणिरोहेण तं विलयमेइ । अण्णह विहलो पत्तो विरहो चारित्तमोहस्स ॥ १४॥
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