Book Title: Adhyatma Pravachana Part 2
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 51
________________ Mr. निक्षेप-सिद्धान्त । मनुष्य अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए भाषा का प्रयोग करता है। बिना भाषा के अथवा बिना शब्द-प्रयोग के वह अपने विचारों की अच्छी तरह अभिव्यक्ति नहीं कर पाता। पशु की अपेक्षा मनुष्य की यह विशेषता है, कि वह अपने विचारों की अभिव्यक्ति भाषा के माध्यम से भली भाँति कर लेता है। यह एक सत्य है, कि जगत का कोई भी व्यवहार बिना भाषा के चल नहीं सकता। अतः परस्पर के व्यवहार को सुचारु रूप से चलाने के लिए भाषा का सहारा और शब्द-प्रयोग का माध्यम मनुष्य को पकड़ना पड़ता है। संसार में हजारों-हजार प्रकार की भाषाएँ हैं और उन भाषाओं के शब्द हजारों ही प्रकार के हैं। प्रत्येक भाषा के शब्द अलग-अलग ही होते हैं। भाषा के ज्ञान के लिए शब्द-ज्ञान आवश्यक है और शब्द-ज्ञान के लिए भाषा-ज्ञान आवश्यक है। भाषा अवयवी है और शब्द उसके अवयव हैं। व्याकरण-शास्त्र के अनुसार अवयवी के ज्ञान के लिए अवयव का ज्ञान परमावश्यक है। भाषा-ज्ञान के लिए शब्दों का ज्ञान नितान्त आवश्यक ___ हम किसी भी भाषा का उचित प्रयोग तभी कर सकेंगे, जबकि उसके शब्दों का उचित प्रयोग करना हम सीख लेंगे। किस समय पर और किस स्थिति में किस शब्द का प्रयोग कैसे किया जाता है और वक्ता के अभिप्राय को कैसे समझा जाता है? यह एक बहुत बड़ा सिद्धान्त है। शब्द प्रयोग के आधार पर वक्ता के अभिप्राय को ठीक रूप से समझ लेना, जैनदर्शन में इसको निक्षेपवाद कहा जाता है। निक्षेप का दूसरा नाम न्यास भी है। निक्षेप और न्यास के सिद्धान्त को समझने के लिए भाषा के शब्दों को और उन शब्दों के अर्थों को ठीक रूप में समझना आवश्यक है। जैन-दर्शन के अनुसार निक्षेप का लक्षण यह है कि, शब्दों का अर्थों में और अर्थों का शब्दों में आरोप करना अर्थात् न्यास करना। ___ संस्कृत-व्याकरण के अनुसार शब्द अनेक प्रकार के होते हैं। जैसे नाम, आख्यात, उपसर्ग, और निपात। घट, पट आदि नाम शब्द हैं। पठति, गच्छति आदि आख्यात अर्थात् क्रिया-शब्द हैं। प्र, परा, उप आदि उपसर्ग एवं निपात शब्द हैं। इन चार प्रकार के शब्दों में निक्षेप का सम्बन्ध केवल नाम से है। अन्य शब्दों के साथ निक्षेप का सम्बन्ध नहीं होता। क्यों नहीं होता? इसके उत्तर में कहा गया है, कि आख्यात शब्द, उपसर्ग शब्द और ५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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