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अध्यात्म-प्रवचन
को राज्य में लाना। राज्य हित के विरुद्ध षड़यन्त्र करना । स्वार्थ पूर्ति के लिए राज्य के कानून को भंग करना। ये सब चोरी के कार्य हैं।
(घ) लेने-देने में कम-अधिक करना । यह कूट तोल और कूट माप अतिचार कहा जाता है। इससे व्यक्ति की प्रामाणिकता नष्ट हो जाती है। श्रावक किसी के साथ विश्वासघात नहीं करता। वह किसी के अज्ञान का अनुचित लाभ नहीं उठाता । कम- अधिक तोलना - नापना और गणना करना, यह विश्वासघात है।
(ङ) वस्तुओं में मिलावट करना, तत्प्रतिरूपंक व्यवहार कहा गया है। असली वस्तु दिखाकर नकली वस्तु देना । बहुमूल्य वस्तु में, अल्पमूल्य वस्तु मिलाकर देना । शुद्ध दूध में पानी मिलाना । नकली दवा देना, जिससे स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। मिलावट करके देना भी एक प्रकार का विश्वासघात ही है। ये सब स्थूल चोरी के उदाहरण हैं। श्रावक को इस प्रकार के छल-बल पूर्ण एवं माया-कपट पूर्ण कार्य कदापि नहीं करने चाहिए। ये सब अतिचार कहे जाते हैं।
स्तेन का अर्थ है-चोर । उसके द्वारा जो वस्तु आहृत अर्थात् लाई जाती है। चोर द्वारा चुराकर लाई वस्तु ग्रहण करना । तस्कर का अर्थ भी चोर है-उसका प्रयोग करना, उसे माध्यम बनाना। राज्य के विरुद्ध अर्थात् विपरीत कर्म अर्थात् कार्य करना ।
कूट का अर्थ है-झूठा । तोलने और नापने के साधन - तुला, बाँट और गज, मीटर को कम-अधिक रखना ।
तत्प्रतिरूपक व्यवहार । इसका अर्थ है-उसके जैसा व्यवहार करना। ये मूल शब्दों के अर्थ हैं, जिनको समझना श्रावक के लिए परम आवश्यक है, अनिवार्य है।
आज के युग में इस व्रत का परिपालन अति कठोर, अति कठिन तथा अति कटु माना जाता है। व्यापारी और सरकारी कर्मचारी में एक-दूसरे का विश्वास नहीं रह पाता। दोनों एक-दूसरे को चोर समझते एवं मानते हैं । अतः संतुलन बिगड़ता चला जा रहा है | श्रावक के समक्ष अनेक समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं। उसकी सही बात का भी विश्वास नहीं किया जाता है। अतः इस व्रत का पालन अति कठिन कार्य है।
(घ) चतुर्थ - अणुव्रत स्थूल मैथुन विरमण - स्वदार सन्तोष व्रत - स्व- पति सन्तोष व्रत ।
स्वदार - सन्तोष व्रत की व्याख्या इस प्रकार से है, कि अपनी पत्नी के अतिरिक्त शेष समस्त स्त्रियों के साथ मैथुन सेवन का मन, वचन एवं काय पूर्वक त्याग कर देना। जिस प्रकार श्रावक के लिए स्वदारसन्तोष का विधान है, उसी प्रकार से श्राविका के लिए स्व- पति-संतोष का नियम है। अपने पति के अतिरिक्त शेष समस्त पुरुषों के साथ मन, वचन एवं काय पूर्वक मैथुन सेवन का त्याग कर देना । श्रावक के लिए स्वदार-सन्तोष एवं श्राविका के लिए स्व- पति-सन्तोष अनिवार्य नियम है। साधु-साध्वी के लिए तो तीन करण तथा तीन योग से मैथुन का सर्वथा परित्याग होता ही है। श्रावक एवं श्राविका के लिए इसका पालन दो करण तथा तीन योग से माना गया है। अतः इस व्रत को स्थूल मैथुन
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